Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 156
________________ [ल ] लट्ठे २६ (?) लगुण १।१२, ३६ = लगन लहरि ११४१ = लहर, तरंग लोहटोपरी १।२७ = लोहे का टोप लोई १।१९ (?) [ व ] बर्बर वव्त्रर १।२७ = वट्टणु २।१० वर्तन वयआणा १।२४ = व्रत आज्ञा वय १।२ = व्रत वड-छाह १।४७ = वटछाया वहुवारी १।३३ = बहुवाटिका वग्गु १।१२ = वल्गा घण्ण १।३४ = वर्ण वावल्ल २।२२ = वावला वायाइ २।२८ (?) वाहियाल ११० = अश्वशाला वाएसरी २।१७ = वागेश्वरी वाहि १।१३ = व्याधि वाक्खरु १।३० = बाखर विज्जु १७ - विद्या विडउ १।३१ विटप = वृक्ष विहाण १।१ = विधान विव्वान २१८ = विज्ञान विसहलु १।१५ = विषफल विरिंद ११४५ = व्यन्तरेन्द्र विडहर १।३५ = विडगृह वियारु १।२६ विकार वीरराउ ३।१९ = वीरराजा वेयण १।३१ = वेदन वेसा १।१२ = वेश्या वेहु १।५ = छेद = वेसरि १।१३ = खज्जर वेसाटइ १।३३ वेश्याटवी वेगिरि २।२८ = विजयार्थं गिरि वेहियर ११२५ वोहित्य = जहाज = जहाज Jain Education International शब्दावली [ स ] सप्पु १।४१ = सर्प सग्ग ११४५ = सर्ग, स्वर्ग सहा २।२ = सभा सहू ११४३ = सहा सही २०११ ( ? ) सल्ली १।४६ (?) सद्द १।३८ = शब्द सक्कु १।१९ = शक्र, इन्द्र सत्तु २।१२ = शत्रु साहुंकार २।२४ = साधुकार संत २।२६ = ( होते हुए ) सत्त ११५, ३०, ३६ = सत्य सच्च २।२७ = सत्य सति १।२६ = सती सत्थु १।७ = शास्त्र सहि १।११ = सखी सहस २०३८ = हजार सणह २।१८ = सन्नद्ध कवच संकउ २।३ = शंका सइय १३२ = स्वयं सनिवाय २२१ = शनिवात सत्त - परोहण १।२९ = सप्तप्ररोहण सणासु २३३, २।२४ = सन्यास सत्यगुरु २।१ = शास्त्र गुरु सहियणु ११४३ = सखीजन संवच्छर २।१३ = संवत्सर सरसा १।१६ = सरस सरील्लइ १।३८ = कामदेव की पीड़ा संखला १।४१ = श्रृंखला सप्परह १।४५ = सर्परथ सत्तगरज्ज २१४५ = सप्तांग राज्य सासण १।१६ = शासन सावय १।२ = श्रावक सार १।४५ = सम्हाल सायउ १।१० = श्रावक For Private & Personal Use Only सिंगी १।२४ = श्रृंगी सिह ११०, ११, १६ सिंह सिहरि १।३१ = शिखर सिगरि १।३६ = ध्वजचिह्न सिल २।२६ = शिला सीर १।१७ = हल सीहणाहु २।२८ = सिंहनाद सुक्क १।११ = शुक्र ९३ सुण्हा ११२३ = वधू सुहाग २१३४ = सौभाग्य सुयण १।२४ = स्वजन सुवा १।६ = सुता सुक्क २१३६ = सुख सुव १।१७= सुत सुय ११८ = सुता सुहण १।३६ = सुधन सुणहा ११४२ = वधू सुव्वय १।१ = सुव्रत ( मुनिसुव्रत ) सुकइ ११२ = सुकवि सुपत्तु १।१३ = सुपात्र सुहड २१४ = सुभट सुहउ ११२८ = सुभग सुंसुमार १।४६ = एक जलचर सुणह १।१२ = कुत्ता सुक्कझाण १।१ = शुक्ल ध्यान से विहि १०४५ = सेवा करनेवाली सोहु १1७ = सौख्य सोवण १।१ = सौवर्ण सोरट्ट २२० = सौराष्ट्र सोहलउ १।३१ = सोहरा सोवण २२१ = सोना [ह] शिव हर १।३० = हयरवु २०१८ = अश्व शब्द हयवर २।९ = उत्तम घोड़ा हरिसंदण १०४५ = हरिस्यन्दन www.jainelibrary.org

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