Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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सिरिवालचरिउ
पुणु वीरदम उट्ठ तुरंतु गयघड चालिउ सिंदूरराय रह- किक्काणइँ कढिज्जमाण घरि घरि रावतहिं भरिय सेस णा संदेसें णारि करण अरि-करि-कुंभत्थल- मोत्तियाइँ कवि भइ एक्क पिय सरसियाउ
वस्तुबंध - ताम कुद्ध भग्गइ सिरिवालु
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लेहु लेहु पभणंतु पधायउ णिग्गय धाणुक्किय वि महंत हूँ संगाम - तूर- कालिय सह sa - डिंडिम-डम तुरुतुरु रसंति कस घाहिये ताडिय वर-तुरंग "मल्हतिर गय घड वेरियाउ बहु-छत्त- चिंधणहु छाइयाई पहरंति परोप्परु सुहड-मल्ल "रावत्तहिं सउ रावत्त खलिय पाइक भिडिय पाइक्किएहिं ता उभय-बल इँ देखिवि महंत
मयले आरुढ णं कथंतु । कामण-भुवंग कर तुह विणाय । धाइ धाणुक्किय उट्ठमाण | रणि चारं वलु जिणहि सेस । सरित पट्ट महु आणि रमण ।
हिप पावहि जेत्तिया हूँ । असिव णिय-पोरुसु मज्झु दाउ ।
धत्ता - वीरदमणु पहु णिग्गउ समरि अभग्गउ सिरिपालहु दूएँ अक्खियउ | अरिवहु णंद परबल - मद्दणु पिक्खि समग्गड पित्तियउ ||२१||
'रह सज्जहु गयघड गुरहु चढहु सुहड सण्णद्धं सज्जहि । पल्लाहु वर तुरय देहु ढक्क रण गहिर-गज्जहि ॥ आरूढ करि-कंधलु देहि असीस पुरंधि | आयदेवि तोणा जुलु दिढ धणहरु सरसंधि ||
[ २. २१. ३
२२
चाउरंग बलु कहिंमिण मायउ । 'घणु-गुण-वाण-पंति लायंत हूँ । तिवलिय गुंजा कालिय-सद्द | सुणि वीर-सरण- मुहि सर्वति । असवारहिं णिज्जिय जहिं समग्गे । करढह - सद्दे णच्चंतियाउ । तहि उभय-वलइँ र आइयाइँ | तीरी - तोमर वाबल्ल- भल्ल ।
- घडहिं वि गय- घड सघणमिलिय । धाणुका सिउधाणुक्किएहिं । पुणु रइय-मंत मंतिहिँ विचित्त ।
धत्ता - यि मणि पहु वुच्चइ दोण्णि वि जुज्झइ समरि वि जु जित्तइ अज्जु । दि परियण-मंदिर महियलि भुंजइ रज्जु ||२२||
सो
२१. १. ग कामिणि भुयंग कर तुह विणाय । २. ग कछिज्जमाण । ३. ग णाहहु संदेसउ णारिवयणु । ४. ग फरु । ५. ग दूए । ६. ग रह सज्जहु गयवर गुडहु । ७. ग सण्णद्ध ।
२२. ग १. धणु गुणहं वाण सज्जंत संत । २. ग वरतुरंग । ३. ग माल्हंतउ । ४. ग रावत्तहं सिउ रावत्त खलिय ।
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