Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 144
________________ २. ३३.३ ] हिन्दी अनुवाद ८१ घत्ता - तब मोहका नाश करनेवाले तपोधनने कहा - " यदि तुम सिद्धचक विधिका विधान करो तो पाप नष्ट हो जायेगा । संसार भी नष्ट हो जायेगा और तुम पाप का यह समुद्र खेल-खेल में तर जाओगे ||३०|| ३१ 'सिद्धचक्र विधि' तीनों लोकोंमें श्रेष्ठ है । राजपुत्र पूछता है - "हे मुनिवर, इसे किस प्रकार किया जाये ?" तब तीन ज्ञानके धारक परममुनि उन्हें बताते हैं -- शुभ आषाढ़ कार्तिक फागुन माह के शुक्लपक्षकी अनुमीको प्राशुक जलसे स्नान कर, वस्त्रोंको धोकर प्रशस्त वस्त्र धारण करे । शक्कर,... दूध, दही, घी लाकर जिनका अभिषेक करें। फिर जल, चन्दन, अक्षत और फूलों, सुन्दर-दीप-धूप और फलोंको धोये और जिनके चरणोंकी पूजा करे । देव शास्त्र गुरुकी वन्दनाकर अपने भव्य आत्मीय जनोंके साथ विनयसे बात करे । सिद्धचक्र विधिको अपने मनमें माने । गुरु जो ( उपदेश व्रतादि ) दे, उसे स्वीकार करे, तुम अपने मनमें यह अच्छी तरह समझ लो । अष्टमी और चतुर्दशीका उपवास करना चाहिए । घत्ता - श्रीखण्ड, कपूर, परिमलपूरसे सिद्ध चक्र व्रतका उद्धार करें । १०८ बार सुन्दर ललित गरियों से जाप करो, मनमें स्मरण करो ||३१|| ३२ अच्छी तरह बँधे हुए बारह फल और फूल, बारह दीप और अक्षत से पूजा करनी चाहिए | एक रंगके बारह अंगारिकोंसे आठ दिन सुन्दर पूजा करनी चाहिए । रातके प्रारम्भ और अन्तमें जागरण करना चाहिए, स्नान, पूजा बहुतसे गीत विनोदों के साथ । अब सिद्धचक्र कथाका फल सुनो। सुना जाता है कि इसके विधानसे रात-दिन मनचाहा फल मिल जाता है । फिर पूर्णिमाके दिन यह करना चाहिए कि चार प्रकारके संघको दान देना चाहिए । फिर करुणा दान भी करना चाहिए । अन्धों, लूलों, लँगड़ोंको दान करना चाहिए । वर्षमें इसे एक बार पूर्ण करना चाहिए । यथाशक्ति इसका उद्यापन करना चाहिए । जिनवरकी प्रतिमाका तिलक करना चाहिए । बारह अर्जिकाओं का पहनावा पहनाना चाहिए । बारह विचित्र फुल्ली और डोरीसे संयुक्त पैंठन ( पोथीपट ) देना चाहिए । धत्ता - मुख्यरूप से शास्त्र दान करें । सिद्धचक्रका मैंने कथन किया इससे ज्ञान और फिर निर्वाणकी प्राप्ति होती है । गणधर देवने ऐसा प्रकाशित किया है ||३२|| ३३ संयमी - जनों को संयम के और व्रतधारियोंको शीतनिवारणके उपकरण दे, क्षुल्लकों, आर्यिकाओं और श्रेष्ठ श्रावकोंको सम्मान दे उनकी तीन प्रकारसे विनय करायें ? फिर अपने ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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