Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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सिरिवालचरिउ
[२.३०.१०घत्ता-तउ भणइ तवोहणु णिज्जिय-मोहणु सिद्ध-चक्क-विहि जइ करहि । तो पाउ पणासइ तिहुवणु णासइ पाप-उवहि लीलण तरहि ।।३०।।
३१ सिद्ध-चक्क-विहि तिहुयण-सारा केण विहाणे करउँ भडारा। पुच्छइ रायवुत्तु मुणिणाहहो कहहि ति-णाणी पुहई-णाहहो। कत्तिय फग्गुण-साढ सुसोहहो सेय-पक्खि अट्ठमि कय-सोहहो । कासु उदऐ धुअ बाहिर-गंथइँ धोय-वत्थ गिण्हेवि पसत्थई। साकर-दुद्ध-दहिय-घिय-धारउ आणेवि जिणु ण्हविएहि भडारउ । जल-चंदण-अक्खय-कुसुमोहहिँ चरु-दीवहिं धूवहिं फल-ढोकहिं । जिण-णाहहो चरण. संपुज्जहि पुणु सुय देव-गुरुहिं णविज्जहि । णिय-भवियण-जण-विणउ पयासहि सिद्ध-चक्क विहि णियमणि भासहि। गुरुणा दिण्णउँ तई पडिवण्णउ अच्छहि णिय-मणि तुहुं पडिवण्णउ । अट्ठमि चउदसि उववासेवउ मेहुण-सण्णावउ रक्खेवउ । घत्ता-सिरिखंड-कपूरहिं परिमल-पूरहिं सिद्ध-चक्क-वउ उद्धरहि ।
अट्टोत्तर-सउ कलियहिँ वियसिय-ललियहिँ करहि जाउ मणे संभरहि ॥३१।।
बारह-फल-फुल्लेहिं सवंधहिँ बारह-दीवय-अक्खय पूजहिं । बारह अंगारिय इकवाणहिँ अट्ठ-दिवस पुज्जेहि रवण्णहिं। बंभचरिउ वसुदिण पालिव्वउ आइ-अंत जायरणु करेल्वउ । ण्हवण-पूज-बहु-गीय-विणोयहिं सिद्ध-चक्क-कह-फलु णिसुणेज्जहि । एण विहाणे अह-णिसु णिज्जइ जिम मण-इंछिउ फलु पाविज्जइ । पुणु पुण्णिम-दिणे एम करिज्जइ दाणु चउव्विह-संघहो दिज्जइ । जो पुणु करुणा-दागु वि किज्जइ । अंधहँ पंगुल-दीणहँ दिज्जइ । बरिस-बरिस सपुण्णई किज्जइ पुणु उज्जवणु ससत्तिए किज्जइ । जिणवर-विंबडं तिलउ दिवावहि बारह अज्जियाई पहिरावहि । बारह पोत्था-वडय विचित्तइँ। फुल्ली-डोरिएहिं संजुत्तइँ। घत्ता-सुय-दाणहिँ करहि पहाणहिँ सिद्ध-चक्क-आहासियउ ।
जिन पावहि णाणउ पुणु णिव्वाणउ गणहर-एव-पयासियउ ॥३२॥
संजमीहँ संजम-उवयरणइ . खुल्लय-अज्जिय-उत्तमसावहि' पुणु गोत्तहो आमंतणु किज्जइ
३३ सीय-णिवारणाई वय-धरणई। बहु-समाणु तिहुविणउ करावहि । सत्तिण भत्ति सम्माणिज्जइ ।
३२. १. ग सुयंधहि । २. ग में इसकी जगह पाठ है-"वारह विह णे व ज्जइ वण्णिय । ३. ग अह
णिसिजहि । ४. ग संघहिं । ५. ग पडइं। ३३. १. ग उत्तिम । २. ग प्रति में इसकी जगह पाठ इस प्रकार है-"सरसु भोउ चउ संघहु दिज्जइं"।
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