Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 141
________________ ७८ सिरिवालचरिउ [२. २८.१ २८ तं णिसुणि णरेसर कहमि पुरि इह भरह-खेत्ति वेयड्ढगिरि । तहिं रयण-संचु णामे णयरु । विजाहर-लोयहँ सुक्खयरु । सिरिकंतु णरेसरु तहिँ वसइ सिरिमइ घरिणि व णं कामरइ । सा जिण-सासणे अइ-णिउण-मइ जिण-ण्हवण-पुज्ज-मुणि-दाण-रइ । सिरिकंतु ण जाणइ धम्म-मग्गु भजई सिक्खाविउ सो समग्गु । तिणि लयउ धम्मु सावय-वयाई गुरुणा दिण्णइँ मणि-भावियाई । पालइ जिण-धम्मु सुहेण जाम हुउ मिच्छादिविहिं संगु ताम । छाडिय जिण-धम्मु वि भयउ वाउ ते पावें रायहो भट्ट जाउ । मुणि दिट्ठउ पई णग्गउ णियंतु अइ-गउर-वण्णु वय-सील-वंतु । पत्ता-मलहारि मुणीसरु जो अवहीसरु कोटि उ अइसउ भणिउ पई। सो गुरु दुग्गुछिउ पइँ णिभंछिउ अवरई पीडियउ सरई ।।२८|| २९ मिच्छा-इट्ठिय मरिवि अयाणा कोढि भए सत्त-सय-राणा । सरि-तडि आतावणे थिउ मुणिंदु पेखेविणु' पई णिदिउ अणिंदु । पई ठेल्लाविवि' णरवइ जलि पेल्लिउँ पावे तुहुँ सायरि छल्लिउ । उग्ग-दित्तु तव-चरण खीणउ काय-किलेसहिँ दीसइ रीणउ । हिम-पडलेहिं अंगु पच्छायउ ते दीसइ जइवरु विच्छायउ। पई चिरु पाणु भणिवि मुणि तासिउ तेण कुकम्में डोमु वि भासिउ । सिरिमइ-देविहि केण वि कहियउ तुम्ह णाहु भउ धम्में रहियउ । जिंदउ सिरिहि अवलोइ-विबोलई करे उरु ताडइ सिरिसर ठेलइ । पाविय-मिच्छा-इट्ठिहिँ मेलहिँ कोढिय पाण चुवहि जण-रोलहिँ। णड-भड पाणहिं गहि उ अयाणउ लोय भणहिँ णि णाहि सयाणउ । घत्ता-णिसुणेवि विरत्तिय छंडिय तत्तिय णिबिणी घरवारहो। कालि वि तउ लेसमि अजिय होसमि वज्जु पडउ भत्तारहो।।२९।। ३० एत्तहिं गउ णरिंदु णियकेयण दिट्ट देवि विच्छाय अचेयण । केण वि भिच्चे रायहो अक्खिउ पइँ जिण-धम्मु देउ उप्पेक्खिउ । तें दीसइ महएवि विदाणी जा अंतेउर सयल-पहाणी । जं भणियउ भिच्चे वयणुल्लउ लग्गउ कण्णे गरिंदहु भल्ल उ । जावि देविहि पायहिँ पडियउ खमहि देवि हउँ पावें जडियउ । जइ णवि पालउँ धम्मु जिणेसर तो मई लज्जिय सयल णरेसर । ता विणि वि लहु गय जिण-मंदिरु जिणु सुउ णविवि णविउ मुणि सुंदरु । आयण्णहु सामी वयणुल्लउ हउँ जु कुसंगहँ संगे भुल्लउ । दइ पायाछित्तु दंडु णिउ भासइ वउ उवएसहि पाउ जहिं णासइ । २८. १. गभरह खित्ति । २. ग घरिविय णं कामरइ। ३. ग सावय वयाइं। ४. ग संहण । ५. ग. बय णियम गरुय सीलवंतु । ६. ग. उवराइ पीडियउ सई। २९. १. ग पिक्खेविण । २. ग ठेलिवि । ३. ग वोलिउ । ४. ग हिमपडलहिं तहु अंगु पछायउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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