Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 136
________________ २. २२. १३ हिन्दी अनुवाद ७३ घत्ता - राजा वीरदमन निकल पड़ा। अरिदमनके पुत्र श्रीपालसे दूतने जाकर यह बात कही कि देखो, शत्रुओं का दमनकारी तुम्हारा चाचा आ गया है || २१॥ 1 वस्तुबन्ध-तब क्रुद्ध होकर श्रीपालने कहा - रथ और महान् गजघटा सजाओ । हे सुभटो, तैयार होकर उनपर चढ़ाई कर दो। अश्वोंपर कवच चढ़ा दो और युद्धके गम्भीर बाजे बजाओ । वह हाथी के कन्धेपर चढ़ गया । इन्द्राणी उसे आशीर्वाद देने लगी । उसने दो तूणीर और धनुष ले लिया । और धनुषपर तीर चढ़ाया । २२ लोलो, कहता हुआ वह दौड़ा। उसकी चतुरंग सेना कहीं भी नहीं समायी । बड़े-बड़े धनुर्धारी निकले । उन्होंने धनुषोंपर बाणोंकी पंक्ति चढ़ा ली । भयंकर संग्राम भेरी बज उठी । तिवलिय गूँज उठी और काहल शब्द कर उठे । डवडिम डिम-डिम करने लगे । तुर्यं तुरु तुरु शब्द करने लगे । वीरशब्द सुनकर, योद्धा रण की ओर चले । अश्ववर कोड़ों की मारसे पीड़ित होने लगे । अश्वारोहियोंने वहाँ सब कुछ जीत लिया । मस्तीमें झूमती हुई गजघटा प्रेरित कर दी गयी । करहडके शब्दपर वह नाचने लगी । बहुतसे छत्र और पताकाएँ छा गयीं । दोनों ओरकी सेनाएँ युद्ध के मैदान में कूद पड़ीं । वीर योद्धा एक-दूसरेपर तीरी, तोमर, वावल्ल और भालोंसे प्रहार करने लगे । राजपुत्र गिरने लगे । गजघटाएँ भी सघन घटाओंसे मिल गयीं । पैदल सेनाएँ, पैदल सेनासे भिड़ गयीं । धनुर्धारी धनुर्धारियों से भिड़ गये। दोनों ओरकी सेनाओंको देखकर मन्त्रियोंने राजकीयमन्त्रणा की ( और कहा ) । घत्ता - "हे राजा, अपने मनमें सोचिए कि हम दोनों ही द्वन्द्वयुद्ध करें । युद्ध में जो जीत जाये, वह वीर परिजनोंसे अभिवन्दित धरतीपर राज करे ||२२|| १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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