Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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सिरिवालचरिउ
धत्ता - पयपालु वि कुद्धउ भणइ विरुद्ध कवणु एहु को मण्णइ | समरंगणि मारउँ महि विब्भाडिउँ करउँ रज्जु णिय- पुणइँ ||१६||
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मंतिहिं संबोहि मालव हूँ जइ पहु अम्हहँ कहिउ सुणिज्जइ म करि देव असाहु णिरुत्तउ | मंतवणें पहु वसंतर जह तुम्हि कहिय तह भेटेसमि सिरिवा मण्णाविय सुंदरि सिरिवालें पुणु दूर - विसज्जिउ मालवराउ चढिउ' साणंदे करुणदेव सिरिवाल समायउ कण्णदेव तुहुँ म परियाणहि तो आलिंगि विणयरि पवेसिउ पुणु भेटिय सात सय राणा हार-डोर - सेहरई समप्पिय सयल विदेस देस किय राणा हट्ठ-सोह जा किय तहि अवसर
घत्ता - सिरिवालु पयउ पुरयणु
'राय-णीति हारिय सामिय पहूँ । लिस व करिज्जइ । सव्व राय - कम्मु बलवंतउ । सम्माणिउ सो दूर तुरंत । गयउ दूउ कहिय सामीसिमि । खमहि देवि अम्हीँ परमेसरि । समपरिवद्धे भेंट करिज्जउँ । चंपाहिंउ सिरिवा गयंदे | जय जय भणेवि मामु बुल्लाविउ । जामायउ सिरिवा ण जाणहि । चारं बलुसलुवि तोसिउ । बालमित्त जे जीव - पराणा | कडय- चूड-कर-कंकण अपिय । ये महु याहु मित्त व राणा । वासरि वण्णइ परमेसरि । तुट्ठउ घरि घरि कियउ बद्धावण" । मणि-मोत्तिय मालहिं खचिय- पवालहिं मंदिर-मंदिर तोरणउ || १७||
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[ २.१६.१२
जय-मंगल-सद्दहिं लवहि संख रायगणि कणयासणइँ देवि जिह गउर वणु क्रियउ सिरिवालहो चंपाउरि मणि सुमरिय तावहि ता पुच्छिउ उज्जेणिहि राणउ पयपाण उत्तुजं किंपि वि भइ कुमरु पुणु एहु ण जुज्जइ मय-गलिय-गंड कुंजर रसंत डिंडिम- दमाम वज्जिय णिसाण रावत चडिय रणजुज्झमाण गय- घड चल्लिय घंटा-रवेण
धत्ता - सिरियालु विचल्लिउ महियलि हल्लिउ' अरि संकिय भेरी-वेग | सामंतइँ चलियइँ सुहडइँ मिलियइँ गहु छायउ हय-खुररवेण ॥१ ॥
भेरी-काहल-मंदल असंख । वयसारिउ सिरि सेसइँ भरेवि । तो विसेसु किउ संधावारहो। किर सुण तहिँ अच्छइ जाव हि । भइ त पहिँ देउं पयाणउ । अरज्जु लेहि तुहुँ टिवि । हो हो माम एम तं पुज्जइ । आरूढ णरवइ पट्टदंत । हिलि हिलि हिलंत खंचिय किंकाण । तोलंत खग्ग | दिढ-पहरमाण । धय-वड-छत्तइँ रण - उच्छवेण ।
१७. १. ग रायणीई । २. ग हारिय । ३. ग वर्याणि । ४. ग णिरुत्तउ । ५. ग मन्नावि । ६. ग समपविद्धे । ७. ग करिव । ८. ग चलिउ । ९. ग लोयहिं दिट्ठउ । १०. ग वधावणउ । १८. १. ग हो हो माम माम तं पुज्जइ । २. ग महंत । ३. ग लुइल्लिउ ।
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