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२. १६. ११ ]
हिन्दी अनुवाद
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सुन्दरी का आलिंगन किया । उसने कहा - "हे देवी, मोतियोंकी माला पहनो । मेघजातकी सुवासित साड़ी पहनो । धात्रीफलके प्रभाववाला और कान्ति से सुवासित ।"
घत्ता - पृथ्वीचन्द्र राजा श्रीपाल बोला - " चतुरंग सेना सज्जित है और अन्तःपुर भी । हे देवी, आज मैंने तुम्हारे प्रसादसे कामदेवको भी जीत लिया है ॥१४॥
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उसके दोनों हाथ पकड़कर वह वहाँ गया कि जहाँपर पड़ाव था । अन्तःपुरने परिवार के स्नेहके कारण उत्साहपूर्वक मयनासुन्दरीको प्रणाम किया । रत्नमंजूषा और गुणमाला भी आयीं । सुन्दरियाँ उसके पैरोंपर गिर पड़ीं। चित्रलेखा, जगरेखा और सुरेखा, रम्भा, जीवन्ती, गुणरेखा । जनोंको मोहित करनेवाली और अपने रूपसे इन्द्राणीको जीतनेवाली मकरकेतु राजाकी कन्याने मदनासुन्दरीके पैर पड़े । वज्रसेन और कनकमालाकी विलासवती आदि नौ सौ पुत्रियोंने भी मदनासुन्दरीको प्रणाम किया । पद्मलोमा जैसी दूसरी अप्सराएँ भी वहाँ आयीं । इन्द्राणीका चित्त चुरानेवाली सौभाग्यगौरी और श्रृंगारगौरी, रण्णा, चन्द्रा, संवईय, पद्मावती और विनीत चन्द्रलेखा । यशोराशि विजयराजाकी पुत्री, इन्होंने भी राजा पयपालकी कन्या मदनासुन्दरी के चरण छुए। उस कामिनीने सिद्ध चक्र विधान किया था, इसीसे वह अठारह हजार स्त्रियोंकी स्वामिनी बनी |
घत्ता -- अपने रतिमन्दिरमें मदनासुन्दरी बोली - "हे नाथ, मैंने अक्षय पराभव सहन किया । सभा में मुझे बुरी तरह फटकारा गया । पिताजीने मेरे कामकी निन्दा की ” ॥१५॥
फै
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मदनासुन्दरी ने अपने मनका रहस्य प्रकट करते हुए कहा कि "पिताजीने मेरे कर्म ( या आचरण) का उपहास किया है। यदि आप मेरा कहना सुनें तो पिताजीसे यह कहिए कि कम्बल पहनकर गलेमें कुल्हाड़ी डालें और हमसे भेंट करें। तभी कुशल है, नहीं तो, कुशल नहीं है और यह अच्छी बात नहीं होगी ।" ऐसा कहकर उसने दूत भेजा । वह लेख लेकर उज्जैन आया । प्रतिहार उसे राजकुलमें प्रवेश दिया । उसने सिर झुकाकर राजाको नमस्कार किया। उसे आसन देकर गौरव के साथ बैठाया गया । पान देकर उससे बातचीत की। उसने राजाके दूतसे पूछा - "प्रजा तो सकुशल है ?” राजाने पूछा - "यह कौन नरपति है ?" दूतने प्रेमपूर्वक बात कही- यह राजा द्वीपाधिप है और योग्य है । द्वीप, समुद्र और सैकड़ों घाटोंका उपभोग करता है । इसलिए जो लेख में लिखा है उसे आप अवश्य कीजिए । धर्मद्वारके मार्ग से ही तुम्हें जाना चाहिए ।
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