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२. १८. १३ ]
हिन्दी अनुवाद
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धत्ता - पयपाल राजा यह सुनकर क्रुद्ध हो उठा। वह विरुद्ध होकर बोला - " यह कौन है ? कौन इसे मानता है ? मैं उसे युद्धप्रांगण में समाप्त कर दूँगा । उस योद्धाको जीतकर धरतीपर राज्य करूँगा अपने पुण्यसे ॥१६॥
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तब मन्त्रीने मालवपतिको सम्बोधित करते हुए कहा कि "हे स्वामी, आप राजनीति में हार गये। यदि आप मेरा कहा सुनें तो इस बलवान् के साथ आपको अपनी शक्तिका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए । निश्चय ही देव आप असत् को पकड़नेका प्रयास न करें । हे राजन्, सबसे बलवान् कर्म होता है ।” मन्त्रीके वचन सुनकर राजा शान्त हो गया । राजाने तुरन्त उस दूतका सम्मान किया और कहा - " तुमने जो कुछ कहा है, वह ठीक है, मैं भेंट करूँगा ।" दूत वहाँसे चला गया और संक्षेपमें उसने वह बात श्रीपालको बता दी । तब श्रीपालने उस सुन्दरीको मनाया कि हे परमेश्वरी देवी, तुम क्षमा करो । श्रीपाल फिरसे दूतको भेजा कि वह (प्रयपाल ) सेनाके साथ भेंट करें ? उसके साथ कर दिये । मालवराज सानन्द वाहनपर चढ़ गया । चम्पाधिप श्रीपाल भी हाथीपर आरूढ़ हो गया । करुणापूर्वक श्रीपाल आया और जय-जय शब्दके साथ उसने अपने ससुरको बुलाया । हे कर्णदेव, आप मुझे जानते हैं, क्या आप अपने दामाद श्रीपालको नहीं जानते ? तब उसने उसे अपने आलिंगन में परिवेष्टित कर लिया। यह देखकर चतुरंग सेना सन्तुष्ट हो गयी । फिर उसने सात सौ रानाओंसे भेंट की, जो उसके बालसखा और उपराना थे । हार, डोर, शेखर उन्हें भेंटमें दिये गये । कटक, चूड़ा और हाथके कंगन समर्पित किये गये। सभी देश-विदेशके राना और भी जितने मित्र राना हैं, वे भी आये उस अवसरपर | बाजारकी जो शोभा की गयी, उसका वर्णन परमेश्वरी वागेश्वरी ही कर सकती है ।
धत्ता - श्रीपालने नगरमें प्रवेश किया, पुरजन सन्तुष्ट हुए । घर-घर आनन्दबधाई हुई | प्रवालोंसे जड़ित मणियों और मोतियोंकी मालाओंसे घर-घरपर तोरण सजा दिये गये ||१७||
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शंखोंसे जयमंगल शब्द हो रहे थे । अगिनत भेरी, काहल और मन्दल ( वाद्य ) बज रहे थे । राजभवन में श्रीपालको स्वर्णसिंहासनपर प्रणामपूर्वक बैठाया गया । श्रीपालको जैसा गौरव दिया गया उसी प्रकार उसकी सेनाका विशेष प्रबन्ध किया गया । वह सुखसे वहाँ रहने लगा । इतने में उसे अपने मनमें चम्पापुरीकी याद आयी । उज्जैनीके राजा पयपालने उससे ( मनकी बात ) पूछी। उसने कहा कि मैं चम्पाके लिए कूच करूँगा । तब राजा पयपालने जैसे-तैसे कहा कि तुम मेरा आधा राज्य बाँटकर ले लो । इसपर कुमार कहता है, यह उपयुक्त नहीं है । हे ससुर ! वह आपको ही पर्याप्त है । तब राजा श्रीपाल मदजलसे गलितगण्ड एवं चिग्धाड़ मारते हुए मुख्य हाथी पर सवार हो गया । डिण्डिम, दमाम और निशान बज उठे । हिलते डुलते किंकाण निकाल लिये गये । युद्धमें लड़नेवाले राजपुत्र सवार हुए । दृढ़ प्रहार करनेवाले वे अपनी तलवारें तौल रहे हैं। घंटा शब्दके साथ गजघटाएँ चलने लगीं । युद्धके उत्साहसे ध्वजपट और छत्र फहराने लगे ।
घत्ता - तब श्रीपालने भी कूच किया । धरती हिल गयी । भेरीके शब्दसे शत्रु काँप उठा । सामन्त चले और योद्धा आपस में मिल गये । घोड़ोंके खुरोंकी ध्वनिसे नभ छा गया ॥ १८ ॥
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