Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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सिरिवालचरिउ
[२. १२. ४९दलवट्टणु पट्टणु संपत्तउ
गुणमाला-मजूस अणुरत्तउ । किर अच्छइ सुहेण जामायउ रयणिहि अद्धरत्ति चिंताविउ । जइ ण जाइ भेटउँ उज्जेणि तउ लेइ दिक्ख पिय सुक्ख-जोणि । धणवालु राउ विण्णविउ ताम जाएवउ मई पठ्ठव हि माम । जइ ण जाउँ तो भास ण वुच्चइ मयणासुंदरि तउ पडिवज्जइ । घत्ता-इय भणिवि कुमार णिज्जिय-मारु गय-वर-रूढउ विमलमइ ।
मयजलभिभारुणु सिदूरारुणु घंटियालु करि मंदगइ ॥१२॥
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चाउरंगु बलु चलिउ तुरंतउ । काहल-तूर-भेरि वाजंत'। रायहो चउ-पासिउ अंतेउरु । पिंडवासु रुणझुणियउ णेउरु । सोरठ्यि -राणा सलवलियई। लयउ कप्पु अगिवाणहँ चलियई। पंच-सयई परिणिय सोरठिय अवरई पंच-सयई मरठिय । गुजरात सय चारि विवाहिय मेवाडिय बे सय परिणाविय । अंतरवासिय सेव कराविय कण्ण-छाणवइ तहिं परिणाविय । सवर-पुलिंद-भील-खस-वव्वर लए डंडि ते झाडिय मच्छर । मालव-देस मज्झि जे वंकुड । 'ते सई विक्कमेण कय संकड । बारह-संवच्छर सम्पत्तउ
उज्जेणिहि आइयउ तुरंतउ । घत्ता-सिमिरु मुक्कु चउपासई कोडि-सहासइँ खोहु वि णयरह जाइयउ ।
_ हल्लोहलि हूवउ सयलु पुरु कवणु णराहिउ आइयउ ।।१३।।
सेणावइ तहो कडयहो थप्पिवि। गउ एकल्लु घरिणि देखण वरु सासु हि अग्गइ भणइ विसूरिय । जइ णवि आजु आउ तुम्ह णंदणु ता सिरिवाल-माय वारइ तहु 'किम वारउ' सुंदरि इम कहियउ मुणिउ ण माइ ताह किं होसइ बारह-वरिस जोण पिउ आवइ तउ सिरिवाले बोलिउ सुंदरि ताम झत्ति तहो वारु उघाडिउ
१४ गउ पायार सत्त णहू लंघिवि । मयणासुंदरि झावइ जिणवरु । आजु अवहि सामिय' की पूरिय । कालि करउँ तर दिक्खा-मंडणु । दिवसु एक्कु पडि वारहि कुलवहु । 'अवरु ताउ परमंडल-गहियउ' । कहिं-होतउ सामिउ आवेसइ। तउ महु सासु दिक्ख परिभावइ । उग्घाडहि किवाड णिय-मंदिरि । गंपि जणणिपय कमलु जुहारिउ ।
१३. ग जइ जाउ ण तो भासिउ चलेइ मयणासुंदरि पवज्ज लेइ। १४. क घट्टियालु । १३. १. ग वज्जतउ। २. ग पंच सयइं परिणिय मरहट्ठिय। ३. ग समर पुल्लिंद मिल्ल खस वव्वर
लइय दंडि ते छाडिय मच्छर । ४. ग ते सहविक्कमेण कय संकूड। ५. ग विभय भ वउ कवण णरा
हिउ आइयउ। १४. १. ग सामिय किय पूरी । २. ग अज्जु । ३. ग कल्लि । ४. ग वरइत्त हो। ५. ग जइ ।
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