Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 119
________________ सिरिवालचरिउ [२.६.१३ घत्ता–पियमेलहिं तुट्टी पणवइ जेट्ठी पाइँ पडिवि धणवाल-सुव । हउँ उरिणु ण तुम्हहँ अवरहँ इहि उवयार मँजूस तुव ।।६।। मंजूसा पुणु भेटिउ सुरंगु 'पिय-चलणअंते धरि उत्तमंगु । बल्लह-पय झाडे केसभार पुणु अग्गे लोटीय वार वार । उहावियं आलिंगिय वरेण मुहु चुंबिउ सामी-महवरेण । उच्छंगे लगवि पुच्छिय पिएण चंगी मॅजूस अच्छहि सुहेण । मंजूस कहइ एकंत-गोहि अइसउ सुखु देखउं धवलु सेट्ठि। इय अच्छहि सुह-कीलाइ जाउ धणवालु कुविउ वणिवरह ताउ । णिउ जंपइ मारहु धवलु सेहि पाणह समेउ पाविधिहि । धरि बोल्लिउ धवलु अमेह-कुंडि खर-रोहणु किउ तहो मुंडु मुंडि । सह पाण विगोइय महाय राय छिदे कर-णासा-कण्ण-पाय ।। पुणु सेहि मरावइ जाम राउ छंडावण तहँ सिरिवालु आउ । बोलइ कुमारु मा मारि राय इह होतइँ मई गुणमाल पाय । सिरिवालु भणइ मा करि विसाउ तुहुँ से ट्ठि महारउ धम्म-ताउ । पुत्तहो बप्पहो विवहारु जुत्तु जंलहणउ तं महु देहि वित्तु । *सिरिवाल लियउ तं सयलु वित्तु अप्पणउ वि जंतउ लियउ सव्वु । पुणु सेट्टि ह किउ आमंतणउ दिण्णउ तहो खड-रसु भोयणउ । घत्ता-देखेविणु भत्तिय गुणगण-जुत्तिय फुट्टिवि हियडउ णरय गउ । तहिं दुक्ख-परंपर सहिय णिरंतर सेठ्ठि णरय पर-तियहँ लउ ।।७।। अच्छइ सुहेण 'अरिदवण-पुत्तु गुणमाला-रयणमजूस-जुत्तु । ता आयउ वणिवरु एकु तित्थु सिरिवाले पुच्छिउ कहि पसत्थु । जं दिट् ठु अपुरवु कहि णिरुत्तु णिय देस-मँडलु जुत्तउ अजुत्तु । ता कहइ सेठ्ठि गुणगण-विसालु जो सव्व-सलक्खणु अइ-गुणालु । कुंडलपुर-णामें देव रम्मु तहिँ मयरकेउ णरवइ सुधम्मु । 'अंगरुह विण्णिवि जियउणु मारु जीवंतु अवरु सुंदरु कुमारु । कप्पूर-तिलय णामेण धी तहि चित्तलेह णामेण धीय । सउ-बहिणिउ तहि संबंधिणीय विण्णाण-जाण-रइ-बंधणीय । घत्ता-दुइजी जगरेह अवर सुरेह गुणरेहा मणरेह तहँ । रंभा जीवंती पुणु भोगवती रइरेहा अच्छरिय जहँ ।।८।। ७. १. 'ग' पय जुवलअंत । २. ग झाडि । ३. ग अग्नें। ४. ग उट्ठाविवि । ५. न गहवरेण । ६. ग पुत्तहु । ७. ग प्रतिमें ये पंक्तियाँ नहीं हैं-ता साच्च धम्मउ जोवहि णिउत्तु । वणिवरहि भणीयउ एह जुत्तु ।। ८. १. ग सणेह । २. ग अंगरुह विणिजि णिजियउ मेरु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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