Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 120
________________ २. ८. १० ] हिन्दी अनुवाद ५७ घत्ता -प्रिये, इस गलतीको क्षमा करो । जेठीको प्रणाम करो । धनपाल - सुत तुम इसके पैर पड़ो। मैं तुमसे न इस जन्ममें और न दूसरे जन्ममें ऋणमुक्त हो सकता हूँ । हे रत्नमंजूषा, तुम्हारा इतना उपकार मेरे ऊपर है ||६|| ७ मंजूषा तब प्रसे भेंट की । प्रियके चरणोंमें उसने अपना सिर रख दिया । केशभारसे प्रियके पैर पोंछे और फिर आगे आकर वह बार-बार लोटी । उस महावरने उठाकर उसका आलिंगन किया और उसका मुँह चूम लिया । गोदमें बैठाकर प्रियने उससे पूछा - " हे रत्नमंजूषा, क्या तुम सुखसे रही ?”..एकान्त गोष्ठीमें रत्नमंजूषाने बताया कि धवलसेठसे मैंने अतिशय सुख देखा। इस प्रकार वे दोनों सुख-विलास करने लगे। इधर धनपाल वणिग्वर धवलसेठ पर कुढ़ गया । राजा ने कहा - " धवलसेठको मार डालो । प्राणों समेत यह पापी नष्ट हो जाये ।" उसने कहा कि “धवलसेठको अमेह कुण्डमें पटक दो । मूँड मूड़कर उसे गधेपर बैठाओ । चण्डालोंके साथ इसे भी कलंकित करो । उसके हाथ, नाक, कान और पैर छेद दो ।" और इस प्रकार जब सेठको राजा मरवा रहा था, तब उसे छुड़वानेके लिए श्रीपाल आया । कुमारने कहा, "हे राजा, तुम इसे मत मारो। इसीके होनेसे ही मैं गुणमालाको पा सका ।" श्रीपालने सेठसे भी कहा कि तुम विषाद मत करो । हें सेठ, तुम हमारे धर्मपिता हो। इसलिए दोनोंमें पुत्र और पिताका व्यवहार ही युक्त है । जो मुझे लेना है वह धन मुझे दे दो। इस प्रकार श्रीपालने उससे सब धन ले लिया और जाते हुए अपना भी सब धन ले लिया । फिर सेठको आमन्त्रित कर उसे षड्स भोजन कराया । घत्ता - श्रीपालकी गुणसमूहोंसे युक्त भक्ति देखकर धवलसेठका हृदय विदीर्ण हो गया । वह नरकगतिमें गया । परस्त्रियोंके कारण, जहाँ वह दुःख परम्पराको निरन्तर झेलता रहा ||७|| ८ अरिदमनका पुत्र ( श्रीपाल ) सुखसे रहने लगा, गुणमाला और रत्नमंजूषा के साथ । तब इतने में वणिग्वर वहाँ आया । श्रीपालने उससे कुशल - कामना पूछी । जो कुछ तुमने अनोखी बात देखी हो वह सुनाओ | अपने देश और मण्डलके युक्त अयुक्त समाचार सुनाओ। तब दूत ने कहा कि वहाँ गुणगणसे विशाल एक सेठ है जो सर्वगुणोंसे सम्पन्न और अत्यन्त गुणवाला है । कुण्डलपुर नामका एक सुन्दर नगर है । उसमें मकरकेतु नामका सुधर्मी राजा है । उसके दो पुत्र हैं जिन्होंने कामदेवको जीत लिया है। एकका नाम जीवन्त है और दूसरेका सुन्दर । कर्पूरतिलक नामकी उसकी पत्नी है। उससे चित्रलेखा नामकी लड़की है, जो विज्ञान और रतिमें निष्णात है । धत्ता - दूसरी है जग रेखा । एक और सुरेखा, गुणरेखा, मनरेखा, रम्भा, जीवन्ती, भोगमती और रतिरेखा जैसे अप्सरा हो ||८|| ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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