Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 116
________________ २. ४. १३ ] हिन्दी अनुवाद ५३ । भरपूर प्रदर्शन प्रारम्भ किया और तब इन्द्रजाल । नाटकके देखने से लोग आश्चर्यमें पड़ गये । वे ताण्डव और लास्यसे क्षुब्ध हो उठे भँवरिया के प्रदर्शनसे सब उन्मद हो उठे । उन्होंने भूमी पद्मासनका नाट्य किया । उसपर सुर, नर और विद्याधर मुग्ध थे । तब राजाने सन्तुष्ट होकर सभीको आभरण और वस्त्र दिये । श्रीपाल पान लेकर आया और वह सबको पान देने लगा । जैसे ही श्रीपाल इधर आया कि एकने आलिंगन करके उसे उठा लिया । घत्ता - नाटक छोड़कर सभी भाँड़ दौड़े। जिस प्रकार कौए कौओंसे मिलते हैं उसी प्रकार वे एक-दूसरे से मिले और बादमें कुछ पूछने लगे। तुम क्यों मूच्छित होते हो और विलाप करके क्यों रोते हो ? ||२|| ३ धनपाल, तुम चिरकाल तक जीवित रहो । जिस प्रकार तुम लोगोंने मुझे पुत्रकी भीख । हे देव, हम जातिसे डोम और चमार हैं, हम अखाद्य खाते हैं और अपेय पीते हैं । हे नरपति, हम लोगों का कौन-सा शौक ? धोबी और चमारोंके घर हम भोजन करते हैं । गधा, कुत्ता और सुअरका मांस खाते हैं । हम डोम भाँड़ और अन्नकण खानेवाले हैं। वह कहता है हम भाँड़ समझे जाते हैं । एक कहता है कि यह मेरा मझला बेटा है । एक और कहता है कि यह मेरा भाई है । एकने कहा यह मेरी कन्यासे जन्मा है । एक डोमने कहा यह मेरा छोटा भाई है । एक और ढीठने कहा कि यह मेरा बड़ा भाई है । एक चाण्डाली कहती है कि यह हमें जन्नदेव की कृपासे मिला है । एक दिन भोजन के लिए झगड़ा करके यह गया । हे देव, यह रूठकर समुद्रमें जा पड़ा। घत्ता - यह सुनकर राजा क्रुद्ध हो गया । एकदम विरुद्ध होकर राजाने तलवरसे कहा-इसे पकड़ो। इस चण्डाल और नीच डोमको मार डालो। इसने हमारे गोत्रमें दाग लगाया है || ३ || ४ तलवरने श्रीपालको बाँध लिया । जो पूर्वजन्ममें लिखा जा चुका है, उसे कौन मेट सकता है । नगर के मध्य हाहाकार होने लगा कि आखिर श्रीपालका दोष क्या है ? विलाप करता हुआ अन्तःपुर रो उठा कि गुणमालाको प्रियका विछोह हो गया । अपना उर पीटती हुई धाय दौड़ती हुई वहाँ पहुँची, जहाँपर गुणमाला तिलक लगा रही थी । वस्तुबन्ध—वह बोली – “हे सुन्दरी, तुम शृंगार क्यों करती हो ? मुँहका मण्डन क्यों करती हो ? आँखों में अंजन क्यों आँज रही हो ? वीणा ( आलापिनी ) क्यों बजा रही हो ? श्रीपालको तो बेड़ियाँ डाल दी गयी हैं । तुम पान और गहने छोड़ो। स्वच्छ हार भी छोड़ो । हंसगामिनी गुणमाला उठो और अपने कन्तकी सुध लो । " उसके वचनोंसे कुमारी गुणमाला काँप उठी और उसी क्षण श्रीपाल के पास गयी । उसकी पत्नी उससे हाथ जोड़कर बोली - " तुम नवतरुणीसे युक्त हो । हे स्वामी, तुम विचक्षण कोटिभट हो। तुम्हारे सामने कोई दूसरा सुभट नहीं है । तुम्हारी कौन सी जाति है ? तुम अपना कुल बताओ ।" श्रीपाल कहता है - "यही मेरा सब कुछ है ।" तब गुणमाला कहती है कि मैं अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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