Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 84
________________ १. १९. ५ ] हिन्दी अनुवाद २१ प्रकार आगम में कहे अनुसार यन्त्र करो । संशय छोड़कर अपना मन स्थिर करो। तुम इस प्रकार श्रीपालको ( नीरोग ) करो । आठवें दिन उसकी व्याधि नष्ट हो जायेगी । तब उसने शीघ्र ही अष्टाङ्क्षिका की और क्रमसे वह प्रतिदिन उसे बढ़ाती गयी । आठों ही दिन उसने जागरण किया । मालवमें चम्पा नरेशने भी यन्त्र की पूजा की । कुमारी और कान्तने पहले दिन एकगुनी पूजा की। नवमीके दिन वह पूजा दसगुनी हो गयी । दसवींके दिन क्रिया-कर्म साधकर उन्होंने सौगुनी पूजा करायी । ग्यारस के दिन उसने बहुत फलोंसे फलित हजार गुनी पूजा करायी । बारहवींके दिन यन्त्रकी आराधना कर शीघ्र दस हजार गुनी पूजा करायी । तेरसके दिन सुन्दरी ने सिद्धचक्रकी एक लाख गुनी पूजा करायी । कुँवर और कान्तने समस्त सिद्धचक्र यन्त्रकी एक करोड़ गुनी पूजा करायी । घत्ता - आठवाँ दिन समाप्त होते ही श्रीपालकी देह कामदेवके समान हो गयी। जिनधर्म के प्रभाव और शुद्धभावसे देश - देशान्तर में उसने जय प्राप्त की || १७ || १८ कोढ़ी; जो दुःख सहन कर रहे थे वे सब शीघ्र ठीक हो गये । जो घोर पाप उन्हें पीड़ा पहुँचाते आ रहे थे, सिद्धचक्र के फलसे वे उनसे निरापद हो गये । सिरपर जहाँ-जहाँ गन्धोदकका स्पर्श होता वहाँ-वहाँ शरीर स्वर्णिम हो जाता । पाँच करोड़ अड़सठ लाख निन्यानबे हजार पाँच सौ चौरासी रोगोंकी संख्या बतायी गयी है वे सब व्याधियाँ शान्त हो गयीं। लोग आतुर होकर गन्धोदक ले रहे थे । समूचा अवन्ती- प्रदेश निराकुल हो गया । वह तरह-तरह की पूजा करती और पात्रों हँसती हुई दान करती । इस प्रकार दोनों अपने घरमें तरह-तरहसे क्रीड़ा करने लगे । उस अवसरपर राजा प्रजापाल भी आया । उन दोनोंको इस प्रकार क्रीड़ा करते देखकर वह अपना मुँह नीचा करके रह गया। तब किसीने उसके सम्मुख जाकर कहा - "हे देव ! सन्देह मत कीजिए, यह पुण्यात्मा वही तुम्हारा कोढ़ी दामाद है । घत्ता - राजा प्रसन्न हो उठा और परिजन भी प्रसन्न हुए । घर-घर बालाएँ नाचने लगीं । बधावा बजने लगा, मंगलगीत गाये जाने लगे और तूर्य नगाड़े बज उठे । १९ राजाका क्षुब्ध मन सन्तुष्ट हो गया । दामाद भी अति मोहित होकर घर गया । उसने कहा—“कामरूप, आप धन्य हैं कि आपने गुणोंसे परिपूर्ण कन्यारत्न प्राप्त किया ।" मनमें हर्षित होकर वह बार-बार कहता - "हमारे साथ भोजन करिए।" फिर उसने सुन्दरीको अपनी गोद में बैठा लिया और सद्भावसे उसका सिर चूम लिया । उसने कहा - " हे पुत्री, हमारा मुँह काला हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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