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१. ३२.४]
हिन्दी अनुवाद
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उचित रेशमी वस्त्र, मणियोंके आभूषण अम्बर (?) रत्नोंसे जड़ा हुआ विस्तृत छत्र, सोना-चाँदी, धनधान्य, गुणोंसे परिपूर्ण सात सौ दासियाँ उसे दीं। बब्बर बोला-'सेठ जी, ऐसा करिए कि अनुग्रह कर हम लोगोंकी बाखर ले लीजिए। मोती, श्रीखण्ड, मंगा, कपूर, लौंग और कंकोल आदि बहुतसे रत्न उसमें भरे हुए हैं। वस्तुएँ लेकर जहाज वहाँसे चल दिये और जलयान रत्नद्वीपसे जा लगे। उसमें अनन्त पद्मराग मणि थे। वहाँ से चलकर वे लोग हंसद्वीप पहुँचे, जिसे विधाताने शुद्ध स्फटिक मणियोंसे बनाया था। जिस द्वीपमें अट्ठारह खदानें हैं। सार (धन), टार ( अश्व, टट्टू ), गय ( हाथी ) और स्वर्णकी खदानें जिनमें प्रमुख हैं। लाट, पाट, जीवादि, कस्तूरी, कुंकुम, हरिचन्दन और कपूरकी खदानें उसमें हैं। जिसमें अमित कुँए और विहार ( स्थल) हैं। रंग-विरंगे धवलगृह और ऊँचे जिनमन्दिर हैं। उसके सामने जहाज ठहर गये। सब वणिक् लोग भोजनमें लग गये।
__ घत्ता-जहाजोंके साथ वे वहीं ठहर गये, वे चल नहीं सके। उस द्वीपमें सघन बादल गरज उठे। मानो ज्ञान विचक्षण दस लक्षणोंवाला धर्म, समूची धरतीको प्रसन्न कर रहा हो ॥३०॥
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दुष्ट थककर हंसद्वीपमें ठहर गये और अपनी-अपनी रुचिके अनुसार उसकी विशेषता बढ़ाने लगे। उसमें विद्याधर राजा कनककेतु रहता था। जिसके सोलह शिखरों पर कनककेतु थे। वह राजनीतिकी चिन्ता करता था-कामदेवकी नहीं। कामको तो उसने अपने शरीरसे ही जीत लिया था। वह अपनी पत्नीमें अनुरक्त था और अपने नगरका राजा था, जो प्रजा रूपी खेतीकी रक्षा करने वाला किसान था, जो शत्रुओंके सुखरूपी वृक्षोंके लिए आग था । जो भी राजा उसके वचनोंके विरुद्ध जाता, वह राजा उसके लिए क्षय था। जो दीन और दयनीय लोगोंके लिए कल्पवृक्ष था और पापरूपी कलानिधिको नष्ट करने के लिए दुष्ट था। जो असहनशील लोगोंके लिए प्रलय दिखा देता था और प्रचण्डबाहु अतुलनीयको तोल लेता था। जो बहुतसे सुखों और धर्मका सेवन करता था तथा दिनरात दया और सुख धर्मका चिन्तन करता था। दिनरात जो मन्त्रणा करने में प्रमुख था और जिसने युद्धके मैदानमें प्रधानोंको नष्ट कर दिया था।
घत्ता-परिजनोंके लिए दुर्लभ उस प्रिय पतिकी घरवाली कनकमाला रति, रस रूपमें सुन्दर थी। दृष्टिसे वह, लोगोंको देखती और फिर देखती, ऐसी लगती जैसे डरी हुई हिरनी हो॥३१॥
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गजके समान गमन करने वाली कनकमाला उसकी प्यारी स्त्री थी। इतनी प्यारी कि जिस प्रकार मणि-स्वर्ण-माला हो। कोयलोंके समान मधुर बोलने वाली उसके समान युवती कोई नहीं ला सका। वह सती अपने गुरु और प्रियके चरणोंकी वन्दना करती उसी प्रकार जिस प्रकार भक्तिसे इन्द्राणी इन्द्रके पैर पड़ती। उसके प्रचुर गुणवाले दो पुत्र उत्पन्न हुए, जो परोपकारमें
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