Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 103
________________ सिरिवालचरिउ [१. ३८. ११घत्ता-कलमलइ, वलइ करयल मलइ धवलु सेठि कामें लयउ । परतिय-आसत्तउ मयणे मत्तउ णर जाणइ इहु णरयगउं ॥३८॥ ३९ र इय' दक्खिवि मंती परियाणिउ सेठि-सरीरु कुचिल्लउ जाणिउ । पुच्छिउ किं णाइक्क अचेयण किं तुव पेट्ट-सूलु सिर-वेयण । किं उम्मउ सणिवाए लइयउ किं तुह अत्थु मंतु कहिं गयउ । भणइ सेठि तुम कहउँ सहारिवि णा मथवाहि हरि णव हारिवि । भणइ हीशु महु मणु आसत्तउ । रयणमँजूस-रूव-संतत्तउ । भणइं ते वि मा करहि अजुत्तउ तुव पुत्तहो केरउ सुकलत्तउ । कामंधउ णउ णरयहो भीयइ कामंधउ परलोय ण ईहइ । घत्ता-कामिहि णउ लज्ज बहिणि ण भज्ज णउ पाविहि सँतु अवसरु । धिय बहिणि ण जोवइ पाउ पलोवइ जिम वणयरु कुक्करु खरु ॥३९।। पुणु कहइ कूड-मंतिहि सहाउ तुम लाखदामु दइहउँ' पसाउ । तुव'गुणु जाणेसउँ हउँ मणेण जिम एह णारि माणउँ सुहेण । ता कहि उ तुम्हि घोसु वि करेहु उच्छलिउ मच्छु जलि वज्जरेहु । ताकिविणु एहु सहँ चढ़ेइ , कट्टहु वरत्तु जिम जले परेइ । ता कियउ कुलाहलु मुक्कदीह 'मरजिया ताहँ मेलइ बिचीह । उच्छलिउ मच्छु वणिवरहँ घोरु किं आवइ इहु असमयहु चोरु । करसउ कवांसु उत्तंगु दीहु सिरिवालु चढिउ देखणे अभीहु । कट्टिय वरत्त ढंढ़तरालि सो पडियउ वूडिवि गउ पयालि । पणतीसक्खर सुमरंतु मंतु गइयउ णियाणि जिणु जिणु भणंतु । जिम सूरु ण भुल्लइ हथियारु जिणमंत्तु तेम जलि णमोयारु । घत्ता-रिद्धि-विद्धि-वरमंगलु सुहु गुणअग्गलु सुव कलत्त मणु रंजणु । घरि घरि होइ सुसंपइ गणहरु जंपइ विहुर-रोर-दुह-खंडणु ॥४०॥ ४१ जिणणामें मयगलु मुवइ दप्पु केसरि वसि होइ ण डसइ सप्पु । जिणणामें डहइ ण धगधगंतु हुववह-जाला सय पज्जलंतु । जिणणामें जलणिहि देइ थाहु आरण्णि चंडि णवि वहइ वायु । जिणणामें भर-सय-संखलाई तुट्रेवि जंति खणि मोक्कला। ३९. १. ग इउ देक्खिवि मंतिहि परिवाणिउ । सेट्टि सरीरु कुचिट्ठउ जाणिउ । २. ख किं तु अत्थु मंत किथु गइयउ । ग कि तुव अत्थु दव्वु किछु गईयउ। ३. ग णाहि। ४. क केरो। ५. ग वीहउ । ६.क कामिणिहि । ७. ग भणिज्ज । ८. ग जाणहिं । ४०.१. ग करिहउं । २. ग मई कहिउ गतु उ जाणिभणेण । ३. ग काटिय वरत । ४. ग पोमदीह । ५. ग मरजीवा तहिं मेलविय जीह । ६.ग कवंसु । ७. ग वेढहंतरालि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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