Book Title: Siriwal Chariu
Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 68
________________ १.४.१०] हिन्दी अनुवाद उन्हें नमस्कार किया। मुनियों, गणधरों और निर्ग्रन्थों (परिग्रहसे रहित) को प्रणाम कर, अजिंकाओंकी वन्दना कर, क्षुल्लकोंको इच्छाकार कर, सावधान होकर श्रावकोंसे पूछकर और तिर्यंचोंके प्रति समभाव प्रकट कर राजा श्रेणिक मनुष्योंके कोठेमें बैठ गया। राजा श्रेणिक वीरजिनेश्वरसे पूछता है-'हे परमेश्वर, सिद्धचक्र विधानका फल बताइए । तब व्रतोंकी आकर ( खानि ) उनकी वाणी इस प्रकार उछली मानो ज्ञान-लहरोंकी तरंगोंवाला समुद्र उछला हो। ___ घत्ता-गौतम गणधर उस वाणीको साधते हैं । अणु ( सूक्ष्म ) रूपसे प्रतिग्रहण कर कहते हैं- "हे श्रेणिक, मैं इष्ट सिद्धचक्र विधि थोड़ेमें कहता हूँ, तुम इष्टजनों सहित उसे सुनो' ॥२॥ इस भारतमें सुन्दर अवन्ती प्रदेश है, जहाँ राजा सत्यधर्मका पालन करता है। जिसमें गाँव नगरके समान हैं और जहाँ नगरोंने भी 'देव-विमानों' को जीत लिया है, जो द्रोणमुख कव्वड ( खराब गाँव ) और खेड़ों ( छोटे गाँव ) से घिरा हुआ है। जिसमें नदियाँ, सर, तालाब कमलोंसे ढके हुए हैं, हंसिनियोंके साथ हंसोंके झुण्ड शोभित हैं। जहाँ गायों और भैसोंके समूह कतारोंमें मिलकर स्वेच्छापूर्वक उत्तम धान्य चरते हैं। नीलकमलोंसे सुवासित पानी बहता है, जिसका गम्भीर जल धीवरोंके लिए वर्जित है। जहाँ पथिक षड्रस युक्त रसोई जीमते ( खाते ) हैं । रास्ते में दाख और मिर्च ( काली मिर्च ) चखते हैं। सभी लोग ईखके रसका पान करते हैं। प्याऊसे पानी पीते हैं और जहाँ बालाएँ अपने स्तन दिखाती हैं। __ घत्ता–जहाँ अनेक प्रकार ( ग्रामों, नगरों, मार्गों आदि ) की पंक्तियोंसे युक्त मालव देश है जो कई अन्य देशोंसे घिरा हुआ है। वहाँ की स्त्रियाँ सुकुमार हैं। उनकी भुजाएँ इतनी कोमल हैं मानो मालतीकी मालाए हों ॥३॥ भूमण्डलके मण्डलमें जो सबसे आगे है, जहाँका राजा जगत् भरकी राजश्रीमें श्रेष्ठ है, जिसके गृहसमूहको कोई ग्रस्त नहीं करता ( जैसे राहु ग्रह, चन्द्र या सूर्यमण्डलको ग्रहण कर लेता है ) वहाँ सभी निडर हैं, किसी को भी शत्रुमण्डलका डर नहीं है । उस विशाल मालवदेशमें अवन्तिपुरी ( उज्जयिनी ) नामक नगरी है जहाँ उनके राजा द्वारा आने वाली विपत्तियों का पहले ही विनाश कर दिया जाता है। जहाँ जब राजा आता है तो शत्रओके पाटल ( पाँवड़े ) बिछ जाते हैं । अठारह लक्षणों वाले धनुर्धारी राजपूत्र उपस्थित रहते हैं। जहाँ तीर और कमान वालों का ही आना-जाना है। जहाँ रास्तोंमें खाद्य वस्तुएँ भरी पड़ी हैं । उस नगरीमें विद्वान् लोग बहुत सी भाषाएँ पढ़ते हैं और श्रीसम्पन्न बनिये निवास करते हैं। वहाँ राजा उसी प्रकार प्रजा का पालन करता है जिस प्रकार गाय चारों थनोंसे अपने बछड़ेका पालन करती है। जहाँ अकीर्ति स्पर्श नहीं कर पाती, मानो अमरावती ही उसका स्पर्श करने आती है। घत्ता-उस मालव दशमें उज्जैनी नामकी प्रसिद्ध नगरी है, करोड़ों स्वर्ण रत्नोंसे जड़ी हुई, वह मानो अमरावती है, जो दवताओंके बलपूर्वक पकड़ने पर भी छूट पड़ी हो ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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