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१. १३. ८ )
हिन्दी अनुवाद शरीरसे पसीना और पीप बहती है। जिन्हें कण्ठमालका रोग है, वे उसके शरीरकी मालिश करते हैं । ( अर्थ स्पष्ट नहीं है ), जिनके फोड़े फुसियाँ हैं, वे घर और सभाकी देखभाल करते हैं। सूर्यके रंगवाले ( कोढ़ के कारण ) वे सुरवीर और विलक्षण हैं। जिसका पूरा शरीर गल चुका है, वह कोढ़ीराजका विलक्षण मन्त्री है, जिन्हें खाज और जलन है, वे सेनापति हैं जो वरटियाली के साथ राजाकी रक्षा करते हैं। प्रतिहारी वे हैं जो बोल नहीं सकते। पुरोहित वे हैं जो कालको थपेड खा चके हैं ? पित्त और शक्रवाले लोगो के साथ वह चलता है। उसका अंगरक्षक रोम विहीन है। चमर धारण करनेवालीपर मक्खियाँ भिनभिना रही हैं, जो कोढ़ीराजपर छत्र लगानी है, उसकी नाक सड़ चुकी है, ऐसी कौन-सी काहलता है जो उसमें दिखाई नहीं देती। जहाँ लोग घण्टा लेकर ही बोल पाते हैं। इस सामग्रीके साथ वह कोढ़ीराज कूच करता है, वह स्वयं अंगराज है और उसके साथ सात सौ राणा हैं।
पत्ता-उन्हें देखते ही राजा बड़े प्रेमसे मन्त्रियोंसे बोला-'कोढ़ी राजा आ रहा है, वह मुझे अच्छा लगता है। यह मदनासुन्दरीके योग्य वर है' ।।११।।
१२ उसे देखकर राजाने आदेश दिया, मन्त्रि-समूह उसके सामने भेजा और कहा कि उसे बुलाओ वह दामाद होगा। मदनासुन्दरीके हृदयका हरण करेगा। आज्ञासे मन्त्री गये और दुःखसे पीड़ित उन्हें गाँवके बाहर जनवासा दिया। अपने घर आकर राजाने बेटी मदनासुन्दरीको बुलाया। वह बोला-"बेटी, मेरी बात मानोगी? तुम कोढीको दे दी गयी हो। क्या उससे विवाह करोगी?" कुमारी बोली-"मैं ने स्वेच्छासे उसका वरण कर लिया है। अब हे तात ! मेरे लिए दूसरा पुरुष तुम्हारे समान है।" राजाने तब सिंहराशि ज्योतिषीको बुलाया। उसने वेदोंके अनुसार उसकी 'लगन' बतायी। "घर अच्छा है, कन्याका विवाह कर दो। मदनासुन्दरी सुख पायेगी।" यह सुनकर सारा अन्तःपुर रो पड़ा। उसने कहा-"यह कन्यारत्न कोढ़ीके योग्य नहीं है, जो रत्नमाला त्रिभुवनमें शोभा पाती है, क्या वह कुतियाको बाँधनेसे शोभा पायेगी ?'' .
घत्ता-इस प्रकार सारा परिवार रो रहा था। नगरके लोग आश्चर्यमें थे। राजाओंकी इकट्ठी हुई सभा कह उठी कि इससे हमें बड़ा अचम्भा हो रहा है ॥१२॥
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तब प्रणाम करके मन्त्री बोला-"जो मन, वचन, कर्मसे शुद्ध त्रिकाल कुशल और अनन्त बुद्धिवाले हैं वे भी आश्चर्यमें हैं। हे नृपश्रेष्ठ, हमारी बात सुनिए; जो कोढ़की बीमारीसे पीड़ित है, उखड़ा हुआ निकृष्ट और दीन है, जिसकी अँगुलियाँ और पैर गलकर सफेद पड़ गये हैं, हे राजन् ! उसे अपनी कन्या कैसे दे रहे हैं ? मदनासुन्दरी चतुर कन्या है। वह किन्नर, देव और विद्याधरोंकी कन्याओंसे भी अधिक (सुन्दर) है।"
इस पर चतुर राजाने प्रतिउत्तर दिया-"तुम्हारी सभाकी मति मारी गयी है। तुम यह क्यों कहते हो कि इसके शरीरमें रोग है ? जिसके परिजन हैं और चतुरंग सेना है, कभी न क्षुब्ध
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