Book Title: Siriwal Chariu Author(s): Narsendev, Devendra Kumar Jain Publisher: Bharatiya GyanpithPage 67
________________ १० सिरिवालचरिउ [१.२.८गणहर-णिग्गंथहँ पणवेप्पिणु अज्जियाहँ वंदणय करेप्पिणु । खुल्लय इच्छायारु करेप्पिणु सावहाणु सावय पुंछेप्पिणु । तिरियहँ किउ समभाउ गरिट्ठउ पुणु णरिंदु णर-कोहि णिविट्ठउ । सेणिउ वीरजिणेसर सिद्ध-चक्क-फलु कहि परमेसर । ता उच्छलिय वाणि वय-आयर णं लहरी-तरंग रयणायर । घत्ता-गोयमु गणि साहइ, अणु पडिगाहइ ए उवएसु पयासइ । सिद्ध-चक्क-विहि इट्ठिय णिसुणि सइट्ठिय सेणिय कह मि समासइ ॥२॥ इह भरहे' अवंती-विसउ रम्म इ पालइ सच्चधम्मु । जहँ गामवसहिं पट्टणसमाण पट्टणहि वि णिज्जिय सुरविमाण । णयरायर-पुर-सोहा-रवण्ण दोणामुह-कव्वड-खेड-छण्ण । सिरि-सर-तडायँ कमलिणिहि पिहिय हंसह उल सोहहिं हंसि-सहिय । गो-महिसि-संड जहि मिलिय मालि भक्खंति सइच्छइँ कलम-सालि। णीलोप्पल-वासिउ वहइ णीरु धीवरहँ विवज्जिउ जलु गहीरु । जेमहि पंथिय जहिं खड-रसोड पहे" दक्ख-मिरिय चक्खंति कोड। इक्खा-रसु पिज्जइ साउ लेवि पाणिउ पीयंति पवालिए वि। धत्ता-तहि विसउ जि मालउ, बहु-विह-माल उ, इयरदेस कयमालउ । जहिँ तिय सोमालउ अइ-सुअमालउ पुण णं मालइ-मालउ ॥३।। जो भुवमंडल-मंडल अग्गें जहिं पहु जयसिरिमंडल अग्गें ?। जहिं ण गहइ गहु मंडलु कोई अभउ ण भउ परमंडल कोई। जहिं पुरि पवरंतरि आवंती णिहय सणा विहुर आवंती। जहिं पहु आइ पडइ अरि पातलं वसु-दह-लक्खण णावइ रावल । रच्छ-चाप-जण जाणइ आवण खेज्ज-वत्थ पूरे पंथावण । जहिं णर-विउस पढहिं बहु वाणिय सिरिणिवास वसहिं बहुवाणिय । गो जिम किउ चउथण पय-पोसण तम बेवि धण-कण, पय-पोसण । जहिं अकित्ति ण पावइ परसण अमरावइ आवइ जिय परसण । घत्ता-उज्जेणि णयरि तहिं पयडि थियः कणयरयण-कोडिहिं जडिय । बलिवंड धरंतहँ सुरधरह अमरावइ णं खसि पडिय ॥४॥ ७. गणिग्गंथहं । ८. ख अज्जियाह । ९. ख ग णंदणहं । १०. ख गुरिट्ठउ । ११. ख पुच्छहं । १२. ख हउ उदेस । १३. खणिग्गयरिट्ठिय । ग गरिट्टिय । ३. १. 'ख' और 'ग' प्रति में ये पंक्तियाँ अधिक है-"इह जवु दीव दीवहँ समिधु तह भरहखेत्तु जय सुयसिद्ध । तहिँ अस्थि अवंती विसउ रम्मु जहि णरवइ पालइ सच्च-धम्मु ।। २. ख पट्टणहं । ग पट्टणह । ३. ख ग सरि । ४. ख तलाव, ग तलाय । ५. ख ग भक्खंति इच्छ खड कमल सालि। ६. ख जिमहि, ग जैवहि । ७. 'ख' 'ग' में ये पंक्तियाँ अधिक है-“चिय खीर दहिय सक्कर हं मोई। ८. क-जहि विजउजमालउ । ४. १. ख ग "जहि पहु आइ पडइ अरिपातल वसुबह-लक्खण वाणवपालल।" २. क कछति वत्थु परि पंथावण । ३. क प्रति में यह पंक्ति नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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