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भौगोलिक वर्णन
नगरोंके बाहर परकोटे भी सुरक्षाके लिए हैं
"जल-खाइय सोहहिं कमल-छण्ण।
सालत्तय मंडिय पंच वण्ण ॥” (१५) नगरके भीतर बाजार-हाट भी हैं। बीचमें सड़कें भी हैं । लोग साधन-सम्पन्न हैं और छत्तीस प्रकारके भोगोंको भोगते हैं । (१।५)
"क्खतीस पवणि भुजंति भोय।" (११५) कोंकण द्वीपके वर्णनमें स्पष्ट लिखा है कि "देश और गाँव समान बसे हुए हैं।" इसी आशयका उल्लेख अवन्तीके वर्णनमें भी किया गया है
___ "जहँ गाम बसहिं पट्टण समाण ।” ( ११३ ) कोंकण द्वीपका वर्णन
___पहु वसहि णिरंतर देस-ग्राम ।" ( २।११) जातियाँ
शवर, पुलिन्द, भोल, खस, बब्बर, धीवर, डोम, मराठा, गुजर, चाण्डाल आदि जातियोंका वर्णन मिलता है। श्रीपाल १२ वर्षको अवधि पूरी कर लेनेपर उज्जैन लौटता है। रास्तेमें शवर, पुलिन्द, भील, खस और बब्बर ईर्ष्या छोड़कर उसकी सेवा करते हैं
"सवर-पुलिंद-भील-खस-वव्वर ।
लए डंडि ते झाडिय मच्छर ॥” ( २।१३ ) अवन्तीके वर्णनमें धीवरोंका उल्लेख किया गया है
'जिसमें नीलकमलोंसे सुवासित पानी बहता है, जिसका गम्भीर जल धीवरोंके लिए वर्जित है।" (११३ )
धवलसेठको जब लाखचोर पकड़ लेते हैं, तब यह खबर गूजर और मराठे आकर श्रीपालको देते हैं
"तब खिन्न होकर गूजर और मराठोंने यह बात श्रीपालसे कही-बर्बर चोरोंने सेठको नहीं छोड़ा।" (११२८) डोम और चाण्डालोंसे मिलकर धवलसेठ श्रीपालके विरुद्ध षड्यन्त्र रचता है।
"किउ मंतु सव्वु कूडहँ अयाण ।
कोकविय डोम-मातंग-पाण ॥” (२।२) इन जातियों के अतिरिक्त धोबी, चमार ( २।३ ), नट ( २।२९) और भाण्डका भी उल्लेख मिलता है। एक स्थानपर यवनोंका जिक्र भी मिलता है । ( ११४२) बीमारियाँ
पेटमें सूल, सिर दर्द ( १।३९ ), सन्निपात ( १।३९, २।१), गलेका फोड़ा, इकतरा ताप और तिजारा ( ११४१ ) बीमारियोंका वर्णन मिलता है।
धवलसेठ रत्नमंजूषा पर मोहित होकर जो चेष्टाएँ करता है उसके फलस्वरूप उसका मन्त्री
पूछता है
"किं तुव पेट्ट-सूलु सिर-वेयण ॥
कि उम्मउ सणिवाए लइयउ।" (११३९) जिनभगवान्के नामकी महिमामें इकतरा ताप व तिजाराका उल्लेख किया गया है
"जिणणामें फोडी खणि विलाइ । इकतरउ ताउ तेइयउ जाइ॥"( ११४१ )
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