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सामाजिक-चित्रण
__ "कोंकण द्वीपके राजा यशोराशिविजयने भी श्रीपालको दहेजमें घोड़े, गज, रथ, ऊँट आदि वाहन और बहुत-से मणिरत्न दिये । सोनेके बहुत-से स्वच्छ हार और समूची चतुरंग सेना उसे दी।” (२०१३)
स्त्री-शिक्षा
स्त्रियोंको भी उच्च शिक्षा दी जाती थी। गाना, बजाना, नाचना, ज्ञान-विज्ञान, शास्त्र, पुराण, वेद, अनेक भाषाओंका ज्ञान, कामशास्त्रकी शिक्षा दी जाती थी। व्याकरण, छन्द शास्त्र, आगम शास्त्र, ज्योतिष, समस्त कलाओं, राग-रागिनियों, विभिन्न लिपियोंका ज्ञान भी दिया जाता था। मैनासुन्दरीकी शिक्षाका विवरण कविने दिया है, जिससे ज्ञात होता है कि स्त्री-शिक्षाका कितना प्रचार था और वे पुरुषसे किसी भी बातमें पीछे नहीं थीं।
मैनासुन्दरीने अनेक प्रकारकी विद्याएँ और कलाएँ सीखी थीं। उसकी विद्याओं और कलाओंका विस्तृत वर्णन दिया है । ( ११७)
गुणमाला भी बहत्तर कलाओंमें निपुण है। (१६४६ ) कविने चित्रलेखाको ज्ञान-विज्ञानमें निष्णात बताया है। (२८)
इसके अतिरिक्त वह नृत्यकलामें भी निपुण है । श्रीपालने सौ कन्याओंसे नगाड़ा बजाकर विवाह किया था, जिनसे विवाह करनेकी शर्त यह थी कि वे सौ कन्याएँ नाचेंगी जिन्हें नगाड़ा बजाकर व हाव-भावसे नृत्य करके जो व्यक्ति जीत लेगा, उन्हींसे उनका विवाह कर दिया जायेगा।
__ शिक्षा देनेका कार्य जैनमुनि और शैवगुरु दोनों ही करते थे। सुरसुन्दरीने ब्राह्मण गुरु और मैनासुन्दरीने जैनगुरुसे शिक्षा ग्रहण की थी।
१. घरजंवाई प्रथा
- घरजवाई रहनेकी प्रथाका वर्णन भी है, परन्तु इसे सम्मानित दृष्टिसे नहीं देखा जाता था। श्रीपाल राजा प्रजापालके यहाँ घरजवाई बनकर रह रहा था, परन्तु जब लोगों द्वारा चर्चाएँ होने लगी तो उसे बुरा लगा। वह खिन्न रहने लगा। एक दिन मनासुन्दरीने खिन्न होनेका कारण पछा तब श्रीपाल बताता है-“हे देवी, यहाँ मुझे कोई नहीं जानता, मेरा मन लज्जित है। घर-घर गीतोंमें लोग यही कहते हैं कि मैं तुम्हारे पिताकी सेवा करता हूँ।"
२. भूत-प्रेत और जादू-टोनेमें विश्वास
"सिरिवालचरिउ' में अनेक स्थानपर डाइन, जोगिनी, पिशाच व जादू-टोनेका वर्णन मिलता है । जिनभगवान्के नामकी महत्ता बतलाते हुए स्पष्ट लिखा है---'जिनके नामसे एक भी ग्रह पीड़ित नहीं करता । दुर्मति पिशाच भी हट जाता है।' (१२४१ ) आगे डाकिनी-शाकिनीका भी उल्लेख है
बारह वर्षकी अवधिपर जानेवाले पुत्र-श्रीपालको माँ कुन्दप्रभा उपदेश देती है उसमें भी साइणीडाइणी और कट्टणीको नहीं भूलनेके लिए सचेत करती है ( १।२४ ) ।
रत्नमंजूषाके रूपपर आसक्त और कामान्ध धवलसेठकी कुचेष्टाओंको देखकर उससे उसका मन्त्री पूछता है-"कोई तुम्हें जन्तर-मन्तर कर गया है ?' ( १।३९) ३. ठग और चोर
'सिरिवालचरिउ' में ठग, चोरों और डाकुओंका भी उल्लेख किया गया है। श्रीपालकी माँ, श्रीपालको उपदेश देती है कि ठग और चोरोंका विश्वास मत करना। (११२४) धवलसेठ को भी रास्तेमें लाख चोर पकड़ लेते हैं और बादमें श्रीपाल उसे छुड़ाता है । ( १।२७ )
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