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wal प्रकाश ....................[१].................
. सर्वज्ञदेवकी श्रद्धापूर्वक श्रावकधर्म .
श्रावकको प्रथम तो भगवान सबक और उनके वचनोंकी पहिचान तथा श्रवा कोली। सर्वशके स्वरूपमें और उनके वचनमें, जिसे आम होता है वह तो मिथ्यात्वके महापापमें पड़ा हुआ है, उसे देशवत अथवा श्रावकपना होता नहीं... यह उद्घोषणा करने वाला प्रथम श्लोक इसे
पायाभ्यन्तरसंगवर्जनतया ध्यानेन शुक्छेन यः कृत्वा कर्मचतुष्टयक्षयमगात् सर्वज्ञतां निषिताम् । तेनोक्तानि वचांसि धर्मकथने सत्यानि नान्यानि तद्
भ्राम्यत्यत्र मतिस्तु यस्य स महापापी न भन्योऽयवा ॥ १ ॥ " देशनतरूप श्रावकधर्मका वर्णन करते समय सबसे पहले कहा जाता सर्वदेवके द्वारा कहा हुआ धर्मका स्वरूप ही सत्य है, इसके सिवाय अन्यका कास हुना सत्य नहीं,-श्रावककी ऐसी निःशंक अदा होनी चाहिये, क्योंकि धर्मक मूळ प्रणेता सर्वदेव है, जिसे उनका ही निर्णय नहीं उसे धर्मका निर्णयो सातामहीं। 2. जो सर्वक्ष हुए वे किस रीतिसे हुए? ict". "समस्त बाह्य तथा अभ्यंतर परिप्रहको छोड़कर और शुक्ल-ध्यान द्वारा चार घोति कोका नाश करके सर्वज्ञपना प्राप्त किया।" देखो शुक्लभ्यान कहो कि शुखों पंयोग कहो उससे कर्माका भय होकर साता प्रगट होती है, परन्तु बाहक की