Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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षट्खंडागमकी प्रस्तावना
सुदस्स गोदमो कत्ता । ततो गंथरयणा जादेति ।...तदो एयं खंडसिद्धतं पडुछ भूदबलि-पुप्फयंताइरिया वि कत्तारो उच्चति । तदो मूलतंतकत्ता वड्डमाणभडारओ, अणुतंतकत्ता गोदमसामी, उवतंतकत्तारा भूदबलि-पुप्फ. यंतादयो वीयरायदोसमोहा मुणिवरा। किमर्थ कर्ता प्ररूप्यते ? शास्त्रस्य प्रामाण्यप्रदर्शनार्थम् , 'वक्त. प्रामाण्याद् वचनप्रामाण्यम् ' इति न्यायात् । (षटूखंडागम भाग १, पृष्ठ ६०-७२)
उसी प्रकार, स्वयं धवल ग्रंथ आगम है, तथापि अर्थकी दृष्टिसे अत्यन्त प्राचीन होनेपर भी उपलभ्य शब्दरचनाकी दृष्टिसे उसके कर्ता वीरसेनाचार्य ही माने जाते हैं । इससे स्पष्ट है कि णमोकारमंत्रको द्रव्यार्थिक नयसे पुष्पदन्ताचार्यसे भी प्राचीन मानने व पर्यायार्थिक नयसे उपलब्ध भाषा व शब्दरचनाके रूपमें पुष्पदन्ताचार्यकृत माननमें कोई विरोध उत्पन्न नहीं होता । वर्तमान प्राकृत भाषात्मक रूपमें तो उसे सादि ही मानना पड़ेगा। आज हम हिन्दी भाषामें उसी मंत्रको 'अरिहंतोंको नमस्कार' या अंग्रेजीमें 'Bow to the Worshipful' आदि रूपमें भी उच्चारण करते हैं, किंतु मंत्रका यह रूप अनादि क्या, बहुत पुराना भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि, हम जानते हैं कि स्वयं प्रचलित हिन्दी या अंग्रेजी भाषा ही कोई हजार आठसौ वर्षसे पुरानी नहीं है । हाँ, इस बातकी खोज अवश्य करना चाहिये कि क्या यह मंत्र उक्त रूपमें ही पुष्पदन्ताचार्यके समयसे पूर्वकी किसी रचनामें पाया जाता है ! यदि हां, तो फिर विचारणीय यह होगा कि धवलाकारके तत्संबंधी कथनोंका क्या अभिप्राय है। किन्तु जबतक ऐसे कोई प्रमाण उपलब्ध न हों तबतक अब हमें इस परम पावन मंत्रके रचयिता पुष्पदन्ताचार्यको ही मानना चाहिये ।
६. शंका-समाधान षट्खंडागम प्रथम भागके प्रकाशित होनेपर अनेक विद्वानोंने अपने विशेष पत्रद्वारा अथवा पत्रोंमें प्रकाशित समालोचनाओंद्वारा कुछ पाठसम्बंधी व सैद्धान्तिक शंकाएं उपस्थित की हैं। यहां उन्हीं शंकाओंका संक्षेपमें समाधान करनेका प्रयत्न किया जाता है। ये शंका-समाधान यहां प्रथम भागके पृष्ठक्रम से व्यवस्थित किये जाते हैं।
पृष्ठ ६ १शंका--' वियलियमलमूढदसणुत्तिलया' में 'मलमूढ' की जगह 'मलमूल ' पाठ अधिक ठीक प्रतीत होता है, क्योंकि सम्यग्दर्शनके पच्चीस मल दोषामें तीन मूढ़ता दोष भी सम्मिलित हैं।
(विवेकाभ्युदय, ता. २०-१०-४०) समाधान--'मलमूढ' पाठ सहारनपुरकी प्रतिके अनुसार रखा गया है और मूडबिद्रीसे जो प्रतिमिलान होकर संशोधन-पाठ आया है, उसमें भी ' मलमूढ' के स्थानपर कोई पाठ-परिवर्तन नहीं प्राप्त हुआ । तथा उसका अर्थ सर्व प्रकारके मल और तीन मूढताएं करना असंगत भी नहीं है।
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