Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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प्रस्तावना इस संसार में प्राणी मात्र को धर्म का ही शरण है, जन्म से मरण पर्यंत धर्मही प्राणी मात्र का सहायक है, इस कलियुग में प्रायः बहुत सी कक्षा धर्म की होगई हैं और सब अपने २ धर्म की स्तुति करते हैं, आजकल प्रायः जैनी भाइयों में से भी बहुत से अल्पज्ञता के कारण अपने सच्चे केवली भाषित दयामय धर्मको त्यागकर दूसरे सावध आचार्यों से कथित (हिंसा बिना धर्म नहीं होता अर्थात् हिंसा में धर्म है) ऐसे मतों को अङ्गीकार कर लेते हैं जिस से इस देश में बहुतसे श्रावकजन गणधर कृत सूत्र सिद्धान्त