Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
View full book text
________________
१
भ्राता
१५६
و
عر
१११
سي
سي
वैराग्य
पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध १५६
भ्रातः १५८ प्रमाणीक
प्रामाणिक प्रमाणीक प्रामाणिक १६०
कारण यह कारण के वास्ते है कि विजयजीने तो विजय जी. इसीलिये विक्रमी मे विक्रमी
वराग १६३
रहिते थे रहते थे १६४
आदिक लोद लोद आदिक १६४
वस्त्रपर रंग वस्त्र को रंग देना देवेती
देवे तो
आर्या संवेग संवेगी १६८ १२ मुखे मुखे १७० १४ उदथ
उदय १०३ विषे
विष १०५ ७ मट
मद्य अभक्षादि अभक्ष्यादि
سر
१६४ १६६
आय
१६९
FREER
१०५