Book Title: Sarvarthasiddhi Author(s): Devnandi Maharaj, Fulchandra Jain Shastri Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 9
________________ प्राथमिक तत्त्वार्थसूत्र जैनधर्म का एक प्राचीनतम ग्रन्थ है और संस्कृत में सूत्ररूप रचना द्वारा जैन सिद्धान्त का विधिवत् संक्षेप में परिचय करानेवाला सम्भवतः सर्वप्रथम ग्रन्थ है। यह रचना अपने विषय की इतनी सुन्दर हुई है कि आज तक दूसरा कोई ग्रन्थ उसकी तुलना नहीं कर पाया। इस ग्रन्थ की महिमा इससे भी प्रकट है कि इसका प्रचार जैन समाज के समस्त सम्प्रदायों-दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी आदि में समान रूप से पाया जाता है। लोकप्रियता में भी यह जैन साहित्य का अद्वितीय ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ की समय-समय पर अनेक टीकाएँ लिखी गयी हैं । दिगम्बर सम्प्रदाय में इसकी देवनन्दी पूज्यपाद कृत सर्वार्थसिद्धि नामक वृत्ति सर्वप्राचीन मानी जाती है। इसका प्रकाशन इससे पूर्व अनेक बार हो चुका है। किन्तु प्राचीन प्रतियों का समालोचनात्मक ढंग से अध्ययन कर पाठ निश्चित करने का प्रयास इससे पूर्व नहीं हो सका था। इस दिशा में पं फूलचन्द्र शास्त्री ने जो यह प्रयत्न किया है उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। ग्रन्थ सम्पादन व मुद्रण आदितः ज्ञानपीठ से प्रकाशन के लिए नहीं किया था, इसलिए इसकी सम्पादन-प्रणाली आदि में इस ग्रन्थमाला के सम्पादकों का कोई हाथ नहीं रहा । पण्डितजी की प्रस्तावना आदि भी उनकी अपनी स्वतन्त्रता से लिखी और छापी गयी है। उसमें मल्लि तीर्थंकर, श्वेताम्बर आगम की प्रामाणिकता आदि सम्बन्धी विचार पण्डितजी के अपने निजी हैं और पाठकों को उन्हें उसी रूप से देखना-समझना चाहिए। हमारी दष्टि से वे कथन यदि इस ग्रन्थ में न होते तो अच्छा था : क्योंकि जैसा हम ऊपर कह आये हैं, यह रचना जैन समाज भर में लोकप्रिय है, उसका एक सम्प्रदाय-विशेष सीमित क्षेत्र नहीं है। अत: उसी उदात्त पर इस ग्रन्थ को सदैव प्रस्तुत करना श्रेयस्कर है। हमें आशा और भरोसा है कि पाठक उसी उदार भावना से इस प्रकाशन का आदर और उपयोग करेंगे। -हीरालाल जैन -आ० ने उपाध्ये ग्रन्थमाला-सम्पादक (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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