Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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जमणिच्चयाइविसए, दुवालसण्हमह पंचवीसाए। पंचमहव्वयविसयम्मि, भावणं भावणाणा जं च विसेसाभिग्गह- गहणसरूवाण भिक्खुपडिमाण। सम्मं दुवालसण्हं पि, पालणं जा य सामइए छेओवट्ठावणिए, परिहारविसुद्धिए य चरणम्मि । जा सुहुमसंपराए, पडिवत्ती तह अहक्खाए सच्चरणरयणपडिपुण्ण-पुरिससीहेसु जं च निच्चं पि । भत्तिबहुमाणकरणं, सा चरणाराहणा भणिया न जहा मणस्स खेओ, तहाविहा जह न देहबाहा वि । इंदियवग्गो वि हु वियल-भावमावज्जए न जहा रुहिरपिसियाइधाऊण, जह य न जायइ तहाविहोवचओ । न य अवचओ वि सहसा, न वायपित्ताइखोभो य पारद्धाणं संजम-गुणाण जायइ जहा न परिहाणी। किंतु जह उत्तरोत्तर- मुस्सप्पणमेव ताण भवे तह जा तवे पवित्ती, अणसणप्पभिइम्मि छव्विहे बज्झे । पायच्छित्तप्पमुहे, इयरम्मि वि छव्विहे चेव इहलोयपारलोइय-सव्वासंसाण दूरपरिहरणा । बलवीरियपुरिसकारण, णिच्चमणिगूहणविहीए जिणदेसियं ति जिणसेवियं ति, तित्थेसरत्तणकरं ति । भवसूयणं ति निज्जर- फलं ति सिवसुहनिमित्तं ति जहचितियत्थसंपाडणं ति, दुक्करचमक्कारजणगं ति । निस्सेसदुट्ठनिग्गह-करं ति करणाण दमणं त देवापि हुआकंपगं ति, निस्सेसविग्घहरणं ति । आरोग्गकरं ति सुमंगलं ति किच्चं ति काऊण कायव्वे च्चिय बहुहा, इमम्मि परमारहं ति एहिं खु । हेऊहिं जो य करणु-ज्जमो तवे परमसंवेगो जं च विचित्ततवगुण-मणिरोहणगिरीसु पुरिससीहेसु । भत्तिबहुमाणकरणं, तं च तवाराऽऽहणं जाण इय सामण्णेण निदं - सियावि एसा विसेसचिन्ताए । संखेववित्थरवसा, दुवियप्पाऽऽराहणा होइ तत्थ य संखेवेणं, ताव इमा जं मुणिय दढमऽसुहं । समणं व सावयं वा, सवित्थराऽऽराहणाणुचिअं अच्चंततिव्वगेलण्ण-पत्तमप्पत्तचित्तसंतावं । दिण्णालोयणमुद्धय-सल्लं गुरुणो भणाविति तदसंपत्तीए पुणो, अवलंबियसाहसो सयं चेव । काऊण भूमिगोचिय - चिइवन्दणपमुहकायव्वं भालयलधरियकरसंपुडो य, धरिऊण माणसुच्छंगे। अरहंते भगवंते, सिद्धे य भणेइ सो एवं भावाऽरिनिहंताणं, भगवंताणं नमोऽरिहंताणं । परमाइसयसमिद्धाणं, तह य नमो सव्वसिद्धाणं एसोऽहमिहगओ हु, वन्दामि ते य तत्थ चेव ठिया । पासंतु वंदमाणं, अप्पडिहयनाणउज्जोया तह पुव्वं पि हु सक्किरिय-गीयसंविग्गसुकडजोगीणं । पुरओ गुरूण सव्वं, मिच्छतं मे पडिक्कतं जीवाऽजीवाइपयत्थ-रुइसरूवं च ताण चेव पुरो। सम्मत्तं पडिवण्णं, भवगिरिणिद्दलणदढकुलिसं इहिं पिताण पुरओ, सविसेसमसेस पि मिच्छत्तं । तिविहं तिविहेण पडि क्कमामि भवभमणहेउमऽहं सम्मत्तं पुण पुणरवि, तेसिं समीवम्मि संपवज्जामि । तत्थ वि पडिवत्ती किर, पुरा वि एसा महं आसि भावारिचक्कअक्कमण-पत्तसब्भूयनामधेयवरा । अरिहंता भगवंतो, देवा साहू य गुरुणो ति
सा चेव इयाणि पि हु, सविसेसा मज्झ होउ पडिवत्ती । एवं वयाणि वि पुणो, विसेसओ संपवज्जामि तह मेत्तीभावो मह, समत्तसत्तेसु आसि पुर्व्विं पि । संपइ सविसेसो सो, तुम्हाण पुणे हवउ मज्झ इइ कट्टु सव्वसत्ते, खामेमि खमंतु तह महं ते वि । मित्ती चेव महं ताण-मुवरि मणसा वि न पओसो तह पडिबन्धो दव्वाइ-गोयरो सव्वहा वि वोसिरिओ । जाव इमम्मि वि देहे, वोसिरिओ मज्झ पेडिबन्धो इय पडिहयपडिबन्धो, तिविहं च चउव्विहं च आहारं । सागारमणागारं पच्चक्खइ सो भवुव्विग्गो तत्तो य पंचपरमेट्ठि-मंतमच्वंतभत्तिसंजुत्तो । परिवत्तंतो कालं, करेज्ज सज्झाणसंपण्णो
एत्थ य महुनरनाहो, संखित्ताराहणाए दिट्टंतो । अण्णो सुकोसलमुणी, मुणियव्वो निच्चलपइण्णो ताहि
अहिगयजीवाइपयत्थ - वित्थरो परमसम्मद्दिट्ठी य। किं बहुणा आगमभणिय-सयलसावयगुणाणुगओ १. पडिबन्धो - रागः,
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