Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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जय जगचूडामणिणा, जिणेण तित्थत्तणेण वागरिय ! । निम्मलछत्तीसगुणालि-निलय ! भयवं ! कुण पसायं भेयप्पभेयदिट्टंत-जुत्तिजुत्तं सवित्थरं नाह! । गिहिसाहुगोयरं मह, कहेहि आराहणविहाणां इय कहिऊणं विरए, फुरंतमणिकंतदंतदित्तीए । धवलितो व्व नहयलं, गोयमसामी भइ एवं
भो ! भो देवाप्पि !, पहाणगुणरयणणिरुवमनिहाण ! । सुविसुद्धबुद्धिकुलभवण ! सुट्टु पुट्ठे तए एयं न हु कल्यणपरंपर-परंमुहाणं कयाइ पुरिसाण । जायइ सुदिट्ठपरमत्थ- पेहणुप्पेहणा बुद्धी ता निरुवमधम्माऽऽधार-धरियदुद्धरपगिट्ठतवभार ! । महसेणमहामुणि ! सिस्स-माणमेयं निसामेसु इय एसा जह रण्णा, महसेणेणं पवण्णदिक्खेणं । जइगिहिविसया पुट्ठत्ति, जं पुरा भणिय वृत्तं तं अट्ठा जह गोयमेण, महसेणमुणिवरिटुस्स । आराहणा तहाऽहं, जहासुयं तं निदंसेमि आराहणेह सिवपुर-परमपहो पहयरागदोसेहिं । अणुवकयपराणुग्गह- परेहिं भणिया जिणिदेहिं सा य महाजलजलनिहि-निहित्तरयणं व कहवि तुडिजोगा । ववहारनयमएण वि, कहं पि जइ लब्भइ जिि ता तीए उत्तरोत्तर- पगिट्ठयारोहणेण पइसमयं । अप्पा विसिट्ठकिच्चेसु, निच्चसो संठवेयव्वो एवं च इमं मणुयत्तणं पि, विहलं न होइ संपत्तं । जिणसमयपसिद्धक्कम - कैमढस्स व दंसणं ससिणो कयमेत्थ पसंगेणं, नाणस्स य दंसणस्स चरणस्स । तवसो य णिरइयारं, कीरइ आराहणं जीए सा चउखंधा आराहणेह, भण्णइ इमा य दुविगप्पा । सामण्णविसेसवसा, तत्थ य सामण्णओ भणिमो जो जत्थ सुए पढाइ-अवसरो तस्स तत्थ चेव सया । विणएण सबहुमाणं, उवहाणपुरस्सरं तह य तो अहीयं, तस्स तओ धुवमनिण्हवणपुव्वं । सुत्तत्थतदुभयाणं, अणण्णहाकरणओ तह जा सुट्टु वायणा पुच्छणा य परियट्टणा परूवणया । तस्सेव य परमेगग्ग-याए अणुपेहणा जाय
दिया राओ, वा वि एगस्स परिसुवगयस्स । अह सुहपसुत्तगस्स य, जागरमाणस्स अहवा वि उद्घट्ठियस्स अहवा, अह व निसण्णस्स अहनिवण्णस्स । कत्थइ थिरस्स चलिरस्स, वा वि अह खलियपडियस्स सुत्थस्स दुत्थियस्स य, सवसस्स परव्वसस्स य तहेव । छीए य वियंभणे खास - णे य, अहवा वि किं बहुणा जहवा तह वा परिसंठियस्स, अणुवरयचित्तवित्तिस्स । तग्गहणधारणापार - तंतवित्तीउ तत्तेण सम्मणाणगुणड्ढे, पुरिसरयणेसु जं च निच्वं पि । भत्तिबहुमाणकरणं, सण्णाणाराहणा एसा जा पुण सरूवगुविलत्तणेण, दुक्खोवलक्खणिज्जेसु । जीवाजीवप्पमुहेसु, सव्वसब्भूयभावेसु अणुवकयपराणुग्गह-परपरमेसरजिणप्पणीयत्ता । कहवि अबोहे वि परं, भवियव्वमिमेहिमिय भावा निस्संसयपडिवत्ती, निच्वं चिय जं च कुच्छियमयं पि। एयं पि इयगुणेणं, सुमयं ति न कंखकारितं विहियाणुट्ठाणफलम्मि, तह य जं संसयस्स परिहरणं । जल्लमलाविलगत्तेसु, जईसु न दुगंछणं जंच जो कुतित्थियअइसय-दंसणाउ न विम्हओ जा य । धम्मियगुणोववूहा, जं गुणदुत्थे य थिरिकरणं जं च तहाविहसाहम्मिएसु, वच्छल्लमिह जहाथामं । अरिहप्पणीयपवयण- पभावणं जं च बहुभेयं इणमेव य णिग्गंथं, पवयणमट्ठो अयं खु परमट्ठो । सेसो हु पुणो अणट्ठोत्ति, भावणा जाय भावेण निम्मलसम्मत्तगुणड्ढ-पुरिसरयणेसु, जं च निच्चं पि । भत्तिबहुमाणकरणं, दंसणआराहणा साउ तह जा असेससावज्ज-जोगपरिवज्जणेण सुपवित्ती। पंचसु महव्वयेसु, दसप्पयारे य जइधम्मे पडिलेहणा-पमज्जण-पमुहाए चक्कवालरूवाए । दसभेयाए तह जा, जइसामायारीए आसेवा
अहवा
दसविहवेयावच्चे, नवसु य तह बंभचेरगुत्तीसु । जा पिण्डविसुद्धीए, गुत्तितिगे समिइपणगे य दव्वं खेत्तं कालं, भावं वाऽऽसज्जऽभिग्गहग्गहणे । इंदियदमणे कोहाइ-निग्गहे जा य पडिवत्ती
१. कमढस्स - कच्छपस्य,
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