Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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किं बहुणापयडियपभूयपव्वो, पासनिवेसियसुपत्तसंताणो। पयइसरलो सुवंसो व्व, पुत्त! वट्टसु तुमं दूरे
।। ५०८॥ सोमो नयणाऽऽणंदी, कलालओ पइदिणं पवड्ढंतो। पुत्त ! पयाणं चन्दो व्व, जलहिणो होज्ज वुड्ढिकए ॥५०९॥ पयईए चेव गरुओ, पयईए चेव दढपइट्ठाणो । पयईए थिरसहावो, पयईए सुवण्णरयणपहो
॥५१०॥ सुविसुद्धजाइवंसो, विबुहाणुगतो य लोयमज्झम्मि। मेरु व्व तुमं पुत्तय!, अचलपहुत्तं चिरं धरसु
॥ ५११॥ गम्भीरिमोदयालं-कितो य गुणमणिणिही पडिच्छंतो। बहुनइनिवहं जलहि व्व, मा हुलंघेज्ज मज्जायं ॥ ५१२॥ इय महसेणनरिंदो, विविहजुत्तीहि सिक्खविय पुत्तं । सामंतमंतिपमुहं, सप्पणयं भणइ पुरलोयं
॥५१३॥ एत्तो तुब्भं एसो, सामी चक्खू य मेढीभूतो य । ता एयस्साणाए, ममं व वट्टेज्जह सया वि
॥५१४॥ हासेण व कोहेण व, लोहेण व जं च दूम्मिया तुब्भे । रज्जोवगएण मए, तं पि य खमियव्वमेत्ताहे
॥५१५॥ कणगवई वि य भणिया, देवि! तुमं चयसु संपइ पमायं । अणुसरसु सव्वविरई, विरमसु संसारवासाओ ॥५१६॥ किमिह पडिबन्धठाणं, सयणे य धणे य जोव्वणे य जहिं। अणवस्यकयविणासो, वसति समीवे च्चिय कयन्तो ॥५१७॥ अहपव्वज्जब्भुज्जय-निववाणीवज्जताडिया देवी। बाहप्पवाहवाउल-विलोयणा जंपए एवं ..
॥५१८॥ देवी-थेरत्तसमुचियमिमं, को संपइ पत्थुयत्थपत्थावो। राजा-तं होज्ज न वा को मुणति, तडिल्लयाचंचले जीए ॥५१९ ॥ देवी-दुस्सहपरीसहे कहं, सहिही तुह सुंदरा सरीरसिरी। राजा-किं सुंदरत्तमेयाए, अट्ठिचम्मावणद्धाए
॥ ५२०॥ देवी-कइयवि दिणाणि निवसह, सगिहे च्चिय कीस ऊसुगा होह। राजा-बहुविग्धे सेयत्थे, खणंपिकह णिवसिउंजुतं? ॥५२१॥ देवी-पेच्छह तहावि नियपुत्त-रज्जलच्छीए पवरविच्छडूं। राजा-संसारम्मि भमंतेहिं णंतसो किं ठियमदिटुं ॥५२२॥ देवी- किं दुक्करेण इमिणा, संतीए समुद्धराए रिद्धीए। राजा-सरयब्भभंगुराए, इमीए को तुज्झ वीसंभो ॥ ५२३॥ देवी-पंचप्पयारपवरे, अपत्तकालेवि चयसि किं विसए । राजा-मुणियसरूवो को ते, सरेज्ज पज्जंतदुक्खकरे ॥५२४ ॥ देवी-तइ पव्वज्जोवगए, सुचिरं परिदेविही सयणवग्गो। राजा-नियनियकज्जाइं इमो, परिदेवइ धम्मणिरवेक्खो ॥५२५ ।। इय पव्वज्जापडिकूल-जंपिरं पेच्छिउं निवो देवि । जंपइ महाणुभावे!, एत्थ वि किं तुह रई जाया
॥५२६॥ किं पम्हटुं जं मज्झ-वयणओ इय भवाओ तइयभवे । गहिया तुमए दिक्खा, पम्मुक्काऽसेससंगाए
॥५२७॥ सोहम्मदेवलोए, देवित्तेणं च मज्झ उववण्णा । इण्डिं पुणो वि भज्जा, परूढदढपेमपडिबद्धा
।। ५२८॥ इय जंपिरे नरिंदे, देवी अणुसरिय पुव्वभववित्तं । आबद्धकरयलंजलि-मुल्लविउमिमं समाढत्ता
॥ ५२९॥ नरनाह ! जुण्णगोणि व्व, विसयपंकम्मि नूण खुत्ता हं। उवएसरज्जुणायड्ढि-ऊण तुमए समुद्धरिया
॥५३०॥ इण्डिं चिय विप्फुरियं, विवेयरयणेण इण्डिं निण्णट्ठा । घरवासवासणा विय, इण्डिं मोहो मह पलीणो
॥५३१॥ ता जह पव्वं तह संपयं पि, पडिवज्जिमो समणदिक्खं । समिणोवमेण एत्तो. पज्जत्तं गेहवासेणं
॥५३२॥ इय तीए जंपियम्मि, राया सविसेसवड्ढिउच्छाहो। कयमज्जणोवयारो, परिहियफलिहुज्जलदुगूलो
॥५३३॥ मोयावियचारगरुद्ध-बद्धअवराहकारिनरवग्गो । सव्वत्थ वि णयरीए, उग्घोसावियअमाघाओ
॥५३४॥ कारावियजिणमंदिर-पूयासक्कारपेच्छणाइमहो। सुकाइपरिच्चाया, धम्मियजणजणियपरितोसो
॥ ५३५॥ सम्माणियपणइजणो, जंमग्गिरतक्कुयाण दिण्णधणो। उचियपडिवत्तिपुव्वय-संभासियपयइवग्गो य
॥५३६ ॥ पासायसिहरपरिसंठिएहि, हरिसुल्लसंतपुलएहिं । पेहिज्जंतो णयरी-जणेहिं दढमणिमिसच्छीहिं
॥ ५३७॥ सब्भूयाहि महत्थाहिं, हिययपरितोसकरणदक्खाहिं । वेयालियणिवहेणं, गिराहिं पवराहिं थुव्वंतो
॥५३८॥ देवीए समं राया, सहस्सनरवाहिणीए सिबियाए । आरुहिऊण पयट्टो, गंतुं जिणपायमूलम्मि
॥५३९ ॥ तयणु गहिरदुंदुहीभेरिभंकारसम्मिस्सआवूरियाऽसंखसंखुब्भवाऽऽरावरुद्धंबरं, जुगविगमसमीरपक्खुद्धखीरोयनिग्घोससंकाकरं किङ्करेहि हयं तूरचाउव्विहं। १. शुल्कादिपरित्यागात्,

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