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शशि कश्यप
SAMBODHI
वरुण का स्थान वैदिक देवताओं में नितान्त महत्त्वपूर्ण है। उन्हें 'विश्वतश्चक्षुः' (सर्वत्र दृष्टि रखने वाले) 'धृतव्रत' (नियमों को धारण करने वाले) 'सुक्रतु' (शोभन कर्मों का सम्पादन करने वाला) तथा सम्राट (शासन करने वाला) कहा गया है ।
'वेद मासो धृतव्रतो द्वादश प्रजावतः । वेदा य उपजायते । ऋग्वेद, १.२५.८
सर्वत्र वरुण प्राणिमात्र के शुभाशुभ कर्मों का द्रष्टा तथा फलों का दाता है। वेद में वरुण राजा है । वह सब पर छाये हुए उच्चतम व्योम का तथा साथ ही सब सागरों का राजा है। सब विस्तार वरुण के हैं । एक मन्त्र में उन्हें 'सत्यधर्मा' कहा गया है
ऋतस्य गोपावधि तिष्ठथो रथं सत्यधर्माणा परमे व्योमनि । वही, ५.६३.१ इसलिए राजा वरुण लोगों के सत्य और असत्यों को देखते हुए उनके मध्य घूमते हैं'यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यञ्जनानाम् । वही, ७.४९.३
मित्रावरुण को सम्बोधित एक मन्त्र में सूर्य को सत्य की आपूर्ति और असत्य का विनाश करने वाला कहा गया है। वह सत्य की पूर्ति वास्तव में दिन निकलने के नियम के रूप में करते हैं व अन्धकार रूप असत्य का विनाश करते हैं
'गर्भो भारं भरत्या चिदस्या ऋतं पिपर्त्यनृतं नि पाति । अथर्ववेद, ९/१०/२३
वरुण प्राकृतिक व्रतों के सर्वोच्च स्वामी हैं । वे पृथिवी लोक एवं धुलोक को स्थिर करने वाले हैं, और सभी लोकों में संचरित रहते हैं (अथर्ववेद, ८.४२.१) । तीनों द्युलोक और तीनों पृथिवीलोक उन्हीं के भीतर निहित हैं।
"तिस्रो द्यावो निहिता अन्तरस्मिन् तिस्रो भूमिरूपराः षड्विधानाः । ऋग्वेद, ७.८७.५
वे सम्पूर्ण पृथिवी पर शासन करते हैं (ऋतेन विश्वं भुवनं विराजथः । ऋग्वेद, ५.६३.७) । सम्पूर्ण संसार के संरक्षक हैं । वरुण के व्रत से ही आकाश एवं पृथिवी पृथक्-पृथक् विधारित हैं (द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कम्भिते अजरे भूतिरेतसा । (६.७०.१)
अमरदेवता भी मित्र और वरुण के अटल व्रतों को टालने में असमर्थ हैं - 'न वां देवा अमृता आ मिनन्ति व्रतानि मित्रावरुणा ध्रुवाणि । वही, ५.६९.४ 'धर्मणा मित्रावरुणा विपश्चिता व्रता रक्षेथे असुरस्य मायया । वही, ५.६३.७
उपर्युक्त स्थल पर 'व्रत' शब्द से अभिप्राय वरुण के 'कानून' से है । वरुण सदैव अपने कर्म में तत्पर रहते हैं। उनका कर्म ही उनका धर्म है। उसमें कदापि त्रुटि नहीं आती है। यही कारण है कि जो कोई मनुष्य स्वकर्म (धर्म) का पालन नहीं करता, उसे वह दण्ड देते हैं । इसीलिए उषाएं न केवल ऋत का अपितु वरुण के नियम का अनुपालन करती हैं ।