Book Title: Sambodhi 2006 Vol 30
Author(s): J B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 244
________________ 238 कृपाशङ्कर शर्मा SAMBODHI कहा की कृति के गुण दोषों का विवेचन करना समीक्षा है । अपने अनुसन्धान का अर्थ किया है कि अज्ञातवस्तु आदि को ज्ञातकर प्रकाश में लाना अनुसन्धान है । आपने बताया की बेलवेनकर ने वेदविद्या से लेकर क्लासिकल संस्कृत-साहित्य का समीक्षात्मक संपादन कार्य किया है। डॉ० प्रीति पञ्चोली ने देवनागरी लिपि के वर्ण विन्यास का अभ्यास कराया । गुजरात विद्यापीठ, भारतीय संस्कृति और इतिहास विषय के पूर्व अध्यक्ष डॉ० रसेश जमीनदार ने 'लिपिस्रोत एवं लिपिविकास' विषय पर अपने वक्तव्य में बताया कि हस्तप्रत विद्या के सम्पादन के लिए कौटिल्य ने पञ्चकर्म का निर्देश किया है-(१) संयमन (२) संशोधन (३)संकलन (४) संदर्शन (५) संलेखन । इन पञ्चकर्म का हस्तप्रतविद्या के सम्पादन में विनियोग आवश्यक है । १८ मई, २००७ : ___'लिपिविकास' विषय पर व्याख्यान का विस्तार करते हुए डॉ० जमीनदार ने बताया कि शक संवत् का प्रचलन गुजरात में हुआ था। इसके प्रवर्तक चाष्टन रुद्रदामा का पितामह था। ब्राह्मी लिपि के विकासक्रम की चर्चा करते हुए श्री जमीनदार ने बताया कि भारत वर्ष में प्राप्त होनेवाले विभिन्न प्रांतो गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि के उपलब्ध शिलालेखों की ऐतिहासिक चर्चा की। डॉ० वाकणकर ने 'Fundamental Principles and Rules of Textual Critisim' विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया । आपने हस्तप्रत के समीक्षात्मक आवृत्ति निर्माण की पद्धति से अवगत कराया । गुजरात राज्य पुरातत्त्व विभाग के निदेशक प्रो० रावत ने समूचे भारत में प्रसरित सिन्धुघाटीसभ्यता संस्कृति इतिहास के साक्ष्यों का उल्लेख करते हुए गुजरात के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा प्रचलित व्यावहारिक विनिमय प्रणाली/पद्धति के तत्त्व और प्राचीन नगर-निर्माण, स्थापत्य आदि तथ्यों को यथा साक्ष्य उद्घाटित किया । आपने धोलावीरा नामक ग्राम का पुरावशेष के आधार पर यथास्थिति प्रमाण प्रस्तुत किया । जल के स्रोत आदि पर भी चर्चा की। अतिथि स्वागत परिचय संस्था के नियामक डॉ० जे०बी० शाह ने किया और प्रो० रावत की अनुसन्धान यात्रा पर प्रकाश डाला । १९ मई, २००७ : डॉ० प्रीति पञ्चोली ने देवनागरी लिपि के संयुक्त अक्षरों के स्वरूपों का प्रतिभागियों को लेखन अभ्यास कराया । प्रो० एम० एल० वाडेकर (बडोदा) ने "हस्तप्रतों में प्राप्त अशुद्धियों" विषय पर व्याख्यान देते हुए बताया कि लेखक के अज्ञानवश अथवा बुद्धिवशात् अशुद्धियों का होना स्वाभाविक है। कभी-कभी स्थान की कमी के कारण भी अक्षर लोप होता है जो अशुद्धि का कारण होता है और समानाक्षर के लोप के कारण भी ऐसा प्रायः हो जाता है। प्रो० रावत (अहमदाबाद) ने 'वडनगर Excavation 2006-07 Recent Findings' विषय से संबद्ध व्याख्यान में बताया की वडनगर को प्राचीन साहित्य पुराण, महाभारत आदि में आनर्त देश या आनन्दपुर, चामरकरपुर, स्कन्दपुर आदि नामों से उल्लेखित किया है । प्रस्तुत नगर के प्रामाणिक

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