Book Title: Sambodhi 2006 Vol 30
Author(s): J B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 246
________________ 240 कृपाशङ्कर शर्मा SAMBODHI श्राविकाओं के कर्तव्यों को उद्घटित करते हुए कहा कि श्रावक का एक धर्म है-पुस्तक लेखन । साथ ही हस्तप्रत संग्रह के प्रकार, जैनपरम्परा में भण्डार आदि तत्त्वों को प्रकाशित करते हुए । हमारी बौद्धिक-सम्पदा पर केन्द्रित देश की ऐतिहासिक घटना को उद्घाटित किया । जिसमें पूर्व प्रधानमन्त्री नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गांधी, सेठश्री कस्तूरभाई आदि के अथक प्रयासों को स्मरण किया गया जिन्होंने इतिहास, संस्कृति और ज्ञान की कोश हस्तप्रतविद्या को संरक्षित करवाया । डॉ० पञ्चोली ने देवनागरी लिपि का अभ्यास करवाया । २३ मई, २००७ डॉ० प्रीतिबेन पञ्चोली ने देवनागरी लिपि के लिप्यन्तरण का अभ्यास प्रतिभागियों को कराया । ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, मैसूर के डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि के वर्णविन्यास और मात्राओं के प्रयोग का प्रकार बताते हुए ग्रन्थलिपि का अभ्यास कराया। डॉ० एच०एन०भावसार (पूना) ने "हस्तप्रतविद्या" सम्बन्धित व्याख्यान में चर्चा करते हुए बताया कि किसी भी हस्तप्रत के सम्पादन में भाषा और लिपि का अपना विशिष्ट स्थान होता है। दोनों का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध भी माना जाता है । आरम्भ में डॉ० जे० बी० शाह ने वक्ता डॉ० भावसार के ज्ञान-वैशिष्टय को उजागर/उद्घाटित किया । उनकी शोधयात्रा का संक्षिप्त परिचय देकर वाचिक स्वागत किया । २४ मई, २००७ : डॉ० भावसार ने 'इन्टरनेशनल पोलिटिक स्क्रिप्ट' विषय पर केन्द्रित व्याख्यान में लिपि उद्भव पर चर्चा करते हुए हस्तप्रत के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को व्याख्यायित किया । तथा संस्कृत भाषा को हस्तप्रत के सम्पादन में रोमनलिपि के ड्रायाक्रिटिकल चिह्नों के प्रयोग के प्रकार बताते हुए समस्त प्रतिभागियों को चिह्नों का अवबोधन कराया । आपने 'Qualities of a manuscriptologiest" विषय पर व्याख्यान में सूक्ष्माति सूक्ष्म तत्त्वों को प्रकाशित किया । जिसमें शब्द, धातु के संकेत भी समाष्टि थे । आपने भारतीय परम्परा में शब्दज्ञान के तथ्यों को भी अन्वेषित किया । डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि का मात्राप्रयोग बताते हुए प्रयुक्त मात्रा पदों का अभ्यास प्रतिभागियों को कराया । यथाइकार, ईकार, उकार, ऊकार, ओकार, औकार, इकारोत्तरवर्ती रकार (रूपद्वय) आदि । २५ मई, २००७ : - डॉ० भावसार (पूना) ने अपने व्याख्यान में शारदा, बंगाली, देवनागरी, लिपि के वर्ण साम्य और वैषम्य पर प्रकाश डाला । तथा किस प्रकार वर्ण-लेखन में परिवर्तन परिवर्धन होता है उसे विस्तारपूर्वक प्रतिभागियों को समझाया । डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि के अभ्यासक्रम को यथावत् जारी रखा । जिसमें 'रेफ' का प्रयोग ऋकार सूचन चिह्न का अवबोधन भी प्रतिभागियों को कराया । तथा हस्तप्रत तथा मुद्रित पुस्तकों में प्राप्त होने वाले वर्णो के परिवर्तित स्वरूपों को भी प्रतिभागियों को अध्यापित किया ।

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