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Vol. xxx, 2006 पाण्डुलिपियों और लिपिविज्ञान की अग्रीम कार्यशाला का अहेवाल 247 उसके कलावैभव स्थापत्य को गहनता से अध्ययन किया तथा उसके कला और तत्सन्दर्भित ऐतिहासिकवृत्त की विस्तृत जानकारी हेमचन्द्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय के प्रो० मुकुन्दभाई ने दी। सभी प्रतिभागियों ने हेमचन्द्राचार्य ज्ञान भण्डार, पाटण के हस्तप्रत संग्रह का दर्शन किया उनके लेखन, साधन सम्पत्ति आदि के बारे में भी जानकारी हासिल की । पूरे एक दिवस का शैक्षणिक यात्राप्रवास इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्वविद्या आदि के सभी अध्येताओं के लिए अवश्यमेव उपादेय तथा सहायक सिद्ध रहा । यात्रा-प्रवास में कार्यक्रम के संयोजक प्रो० कानजीभाई पटेल तथा प्रो० कनुभाई शाह भी साथ रहे। १४ जून, २००७ :
डॉ० बालाजी गणोरकर, निदेशक, बी०एल० इन्स्टिटयूट, दिल्ली ने "आधुनिक जमाने में हस्तप्रत के सूचीकरण पद्धति' विषय पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। जिसमें आपने सूचीकरण के भौतिक स्वरूप पर चर्चा करते हुए व्यावहारिक जानकारी दी।
डॉ० अशोककुमारसिंह, प्रोफेसर, बी०एल० इन्स्टिटयूट, दिल्ली ने 'नियुक्तियों के सन्दर्भ में पाठभेद एक विमर्श' विषय पर चर्चा करते हुए किस प्रकार के पाठन्तर प्राप्त हो सकते है उन बिन्दुओं को प्रकाशित किया जैसे शब्दों के क्रम परिवर्तन भाव को यथावत् रखते हुए शब्द के प्रकार, प्राकृत व्याकरण में उपलब्ध व्याकरण, स्वर-व्यञ्जन परिवर्तन तथा शब्द तथा धातुरूप में अन्तर तथा लिपिकार द्वारा व्यञ्जनच्युति और अतिरिक्त व्यञ्जन के समावेश आदि। डॉ. सिंह ने कतिपय उद्धरणों को भी यथेष्ट उपस्थापित किया । जैसे वाला मंदा किड्डा (बालाकिड्डा मंडा) मिच्छत चित्तस्स (अण्णाण चितस्स) ।
प्रो० रतन परिमू (अहमदाबाद) ने सचित्र गीतगोविन्द के सन्दर्भ में चर्चा करते हुए उसमें गर्भित संयोग-वियोग, संयोग-विप्रलम्भ आदि के सचित्र व्याख्यान के तथ्यों को उद्घाटित किया । डॉ० पी०सी० शाह ने 'Globalization and inside the Indian Manuscripts viewing the invisible' विषय पर व्याख्यान देते हुए वैज्ञानिक तकनीक (कम्प्यूटरीकरण) से हस्तप्रत का संरक्षण
और सूचना प्रौद्योगिकी (इन्टरनेट) से हस्तप्रत माहिती प्राप्ति के विषय में चर्चा की । प्रो० शाह का स्वागत व परिचय डॉ० जे०बी० शाह ने किया। १५ जून, २००७ :
आज प्रथम कालांश में डॉ० बालाजी गणोरकर ने हस्तप्रतों के सूचीकरण विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया । डॉ अशोकसिंहजी ने पाण्डुलिपि सम्पादन में छन्दों की उपयोगिता नियुक्ति साहित्य के सन्दर्भ में विषय को आधार बनाकर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया । आपने प्राकृत में गाथा छन्द के उदाहरण देकर पाठभेदों से अवगत कराया । "आगैवि संस्कृतेतर भाषासु गाता संज्ञेति गाथा लक्षणानि" (आ० हेमचन्द्र) । आपने "जैन व्याख्याओं मे उद्धरणों का स्वरूप" विषय पर भी अपना व्याख्यान प्रदर्शित किया। डॉ० पी०सी० शाह ने एवं० डॉ० सुयश ने हस्तप्रतों एवं हस्तप्रत भण्डारों के संरक्षण एवं विषयवस्तु के संरक्षण हेतु बनाए हुए सॉफ्टवेयर से अवगत कराया ।