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कृपाशङ्कर शर्मा
SAMBODHI
११ जून, २००७ :
डॉ० श्यामसुन्दर निगम ने ब्राह्मी लिपि के विकासक्रम की यात्रा को व्याख्यायित करते हुए मन्दसौर से प्राप्त अभिलेखपत्र की छायाप्रत का वर्णज्ञान कराते हुए सभी प्रतिभागियों से उसका यथावाचन अभ्यास करवाया। आपने कुटिललिपि से उद्भूत शारदा तथा नागरी लिपिद्वय पर चर्चा की तथा लिपियों की शैली तथा विविध लिपियों के नामोल्लेख किया । प्रो० बोम्बेवाला पीरमोहम्मद शाह रोजा के ट्रस्टी ने 'Manuscriptology in Arbi Parasian and Urdu Literature' विषय पर केन्द्रित व्याख्यान में बताया कि सुल्तान अहमदशाह की लाइब्रेरी में ४००० ग्रन्थ थे आज जो लुप्त प्राय है। चांच, गुजरात में दो ऐसी मस्जिदे हैं जो पूर्ण भारतीय स्थापत्यकला पर आधारित है। दीवानेजलाली नामक पुस्तक का एडिटिंग स्वयं प्रो० बोम्बेवाला ने किया है।
प्रो० कीर्तिदाबेन शाह गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद के गुजराती विषय के प्राध्यापिका ने 'मध्यकालीन गुजराती साहित्य संशोधन संपादन' विषय पर अपना प्रवचन केन्द्रित रखा जिसमें आपके द्वारा उक्त विषय के सूचीपत्र तथा संशोधन विषयक जानकारी उपलब्ध करवायी। आपने "अरबद खरबद धूधूकार न, होता उडपति न होता भाग" पर चर्चा कर विराम दिया। १२ जून, २००७ :
डॉ० प्रीति पञ्चोली ने लिप्यन्तरण के नियम बताते हुए हस्तप्रत में प्रयुक्त चिह्नों के प्रकार बताते हुए उन्हें व्याख्यायित किया । जैसे पाठपरावृत्तिदर्शक चिह्न, पतितपाठदर्शकचिह्न स्वर संध्य दर्शकचिह्न, हंसपाद आदि। प्रो० बोम्बेवाला ने अरबी, पर्शियन हस्तप्रत-साहित्य पर चर्चा की जिसमें उसके प्रकार, यथा-खत, नस्ख, नस्तालीक आदि की व्याख्या प्रस्तुत की। आपने बताया कि अरबी की हस्तप्रत को नस्ख कहा जाता है । उर्दू की पुस्तक को नस्तालिक कहा जाता है । आपने लेखक के लिए कातिब तथा अध्यापक के लिए आलिब शब्द प्रचलित होना बताया ।
प्रो० कीतिदा शाह (अहमदाबाद) ने हस्तप्रत विषयक सामान्य चर्चा की । आपने अनेक उपयोगी पुस्तकों की जानकारी दी । यथा-साहित्य संशोधन की मूल पद्धति (जम्बू व्यास), साहित्यसंशोधन की पद्धति के मूल तथ्यों (सी०बी० महेता), मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश, गुजराती साहित्यकोश में प्रेमलदास की रचनाओं का प्रकाशन है । तथा अनेक उपयोगी चर्चा की। प्रो०रतन परिमू ने 'सचित्र श्रीपालरास' के उपलब्ध चित्रों के साथ मूल ग्रन्थ के परस्पर सम्बन्धों को यथाचित्र व्याख्यायित किया । १३ जून, २००७ :
राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन एवं एल०डी० इन्स्टिट्यूट के संयुक्त कार्यक्रम के अन्तर्गत दिनांक १३-६-२००७ के शैक्षणिक यात्राप्रवास में गुजरात राज्य की इतिहास संस्कृति और कलास्थापत्य का समुज्ज्जवल चित्र मोढेरा स्थित सूर्यमन्दिर का सूक्ष्मता से अवलोकन कर अध्ययन किया और उसके वैशिष्ट्य से अवगत हुए । तदनन्तर पाटण स्थित विश्वप्रसिद्ध राणी की वापी का अवलोकन किया ।