Book Title: Sambodhi 2006 Vol 30
Author(s): J B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 249
________________ Vol. XXX, 2006 पाण्डुलिपियों और लिपिविज्ञान की अग्रीम कार्यशाला का अहेवाल 243 १ जून, २००७ : डॉ० कृपाशंकर शर्मा ने शारदालिपि के संयुक्त वर्णो का प्रयोग प्रतिभागियों से करवाया और कुछ शब्दों का श्यामपट्ट पर लेखन कर प्रतिभागियों से उच्चरित करवाया । डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि का क्रम यथावत जारी रखा । डॉ० जी० बे० शाह ने 'लेखनकला एवं प्रकार' विषय का क्रम पूर्ववत जारी रखा । जिसमें ग्रन्थान, आदिवाक्य, अन्तिमवाक्य, प्रशस्ति, समाप्तिदर्शक आदि । संशोधन के संकेत–पाठभेद, पाठान्तर, पतितपाठ, द्विगुणितपाठ-भ्रष्टपाठ-अशुद्धपाठ, दो पाठपरंपरा आदि। आपने जैनधर्म में प्रचलित वाचनात्रयी का भी उल्लेख किया। डॉ० शाह ने हस्तप्रत लेखन के साधन-सम्पति पर भी चर्चा की । डॉ० जगन्नाथ ने पुनः ग्रन्थलिपि का अभ्यासक्रम जारी रखा । २ जून, २००७ : ____डॉ० कृपाशंकर शर्मा ने शारदालिपि के अध्यापित पाठ का पुनः प्रतिभागियों को अभ्यास कराया । डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि का पठनाभ्यास यथावत् जारी रखा । श्री विस्मय एच० रावल ने 'The care and Hendling of MSS' विषय पर केन्द्रित व्याख्यान में दैनन्दिन प्रयोग में ग्रन्थालय/संग्रहालय में हस्तप्रत अथवा पुस्तकों के अध्ययन करते समय रेंक से किस प्रकार निकालना, पकडना चाहिए वे सब बाते बताई । डॉ. जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि का अभ्यास यथावत् जारी रखा । ३ जून, २००७ : डॉ० कृपाशंकर शर्मा ने शारदालिपि के संयुक्त वर्णों के कतिपय शब्द प्रयोग करते हुए प्रतिभागियों को वर्णों के संयुक्त स्वरूपों का साक्षात्कार कराया । डॉ जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि का अभ्यासक्रम पूर्ववत् जारी रखा। श्री विस्मय रावल ने "हस्तप्रत के लिए प्रकाश (विद्युत) अभिशाप है या वरदान" विषय पर केन्द्रित व्याख्यान में बताया की हस्तप्रत के अध्ययन/अनुसन्धान/ संरक्षण के समय आवश्यकता से अधिक प्रकाश अभिशाप है । और आवश्यकतानुसार प्रकाश का उपयोग वरदान है । डॉ० जगन्नाथ ने हस्तप्रत के लिए उपयुक्त/उपयोगी कतिपय छन्दों की जानकारी प्रतिभागियों को उपलब्ध करायी । . ४ जून, २००७ : डॉ० कृपाशंकर शर्मा ने शारदालिपि के अभ्यास का क्रम जारी रखा । डॉ० एस० जगन्नाथ ने प्रत्येक प्रतिभागियों को मञ्च पर आहूत कर स्वेच्छिक वाक्यों का स्वहस्त लेखन श्यामपट्ट पर प्रयोग करवाया । डॉ० जे०बी० शाह ने हस्तप्रत लेखनकला के प्रकार विषय से संबद्ध तथ्यों में जैनपरम्परा, ग्रन्थलेखन कि विधि, पदार्थ तथा लेहिया के गुण और दोषों पर विस्तार से चर्चा की। आपने आचार्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256