Book Title: Sambodhi 2006 Vol 30
Author(s): J B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 247
________________ Vol. xxx, 2006 पाण्डुलिपियों और लिपिविज्ञान की अग्रीम कार्यशाला का अहेवाल 241 २६ मई, २००७ : डॉ० भावसार (पूना) ने शारदा लिपि के वर्ण विकास की यात्रा पर चर्चा की उनके विविध स्वरूपों को बताया । आपने शब्द के अर्थबोधन के लिए भर्तृहरी के वचन उपस्थापित किये - ___ संयोग, विप्रयोग, साहचर्य-विरोधिना, अर्थप्रकरण-लिंग, शब्दअन्य-समाधि, औचितिदेशकालादि, इत्यादेयः हेतवः स्वरमात्रा इत्यादयः । तथा उनकी विस्तार से चर्चा की। डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि का अभ्यास प्रतिभगियो को कराया तथा प्रत्येक विद्यार्थी से दश-दश संस्कृत के ग्रन्थनाम तथा रचिता तथा स्वयं का परिचय लिखित रूप में प्रतिभायिगों से कराया । २७ मई, २००७ : ____ एल०डी० इन्स्ट्यूिट के नियामक डॉ० जितेन्द्र बी० शाह ने "हस्तप्रत-विज्ञान" सम्बन्धित व्याख्यान में उन बिन्दुओं को स्पर्श किया जिनका ज्ञान हस्तप्रत विद्या के अनुसन्धान कर्ता के लिए आवश्यक होता है। इसके अन्तर्गत भारतवर्ष में उपलब्ध जैनहस्तप्रतभण्डारों के वैशिष्ट्य अनुमानित उपलब्ध ग्रन्थ संख्या आदि को बताया तथा दुर्लभ हस्तप्रतों का नामोल्लेख करते हुए उन ग्रन्थों के विषय वैशिष्ट्य तथा कर्ता के विषय में जानकारी दी। जिनमें हेमचन्द्राचार्य, जयसिंह, भट्ट प्रज्ञाकर गुप्त आदि समाविष्ट थे । आपने जयसिंह के तत्त्वोपप्लवसिंह के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि विश्वभर में मात्र एक प्रत चार्वाक (दर्शन) की है। अर्चट ने हेतुबिन्दु टीका के सम्बन्ध में चर्चा की। अर्चट के ग्रन्थ के विषय में स्याद्वाद रत्नाकर की रत्नाकरावतारिका टीका में उल्लेख किया है अन्यत्र कहीं भी सूचना प्राप्त नहीं होती । डॉ० शाह ने श्वेताम्बर ग्रन्थ भण्डारों की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। मीशीशरण ने सम्पूर्ण भारत वर्ष की यात्रा ह्येनसांग के अनुकरण के आधार पर की है जो एक भारतीय थे। आपने पण्डितप्रवर राहुलसांकृत्यायन के विषय में भी चर्चा की जिसमें उनके ज्ञानवैदुष्य को उद्घाटित करते हुए बताया कि वे ५० भाषा के ज्ञाता महापण्डित थे । विविध भाषाओं के अनेक ग्रन्थों का अनुवाद किया है। डॉ० एस० जगन्नाथ ने समस्त प्रतिभागियों से ग्रन्थलिपि का अभ्यास श्यामपट्ट (ब्लेकोर्ड) पर कराते हुए उनके अभ्यास में अपेक्षित परिमार्जन भी किया । और हस्तप्रत के उपलब्ध होने वाले वर्णविन्यास में कतिपय परिवर्तनों पर भी प्रकाश डाला । डॉ० प्रीति पञ्चोली ने समस्त प्रतिभागियों से हस्तप्रत के पत्रों का पठनाभ्यास तथा लिप्यन्तरण करवाया। २८ मई, २००७ : डॉ० एस० जगन्नाथ ने ग्रन्थलिपि के अभ्यासक्रम में प्रतिभागियों को एक-एक क्रम से श्याम भट्ट पर अभ्यास कराया । तथा प्रतिभागियों की होनेवाली अशुद्धियों का परिष्कार किया। डॉ० जे० बी० शाह ने "हस्तप्रत-साहित्य विविधता एवं विशेषताएँ" विषय पर केन्द्रित भारतीय-साहित्य वैदिक, जैन, बौद्ध तथा अन्य बौद्धिक सम्पदा के प्राप्त प्रकारों पर चर्चा की। विशेषतः जैनागम के भेद तथा उनके ऊपर लिखे गये टीका-टिप्पण आदि के विविध प्रकारों के नामोल्लेख तथा गर्भित विषयवस्तु के आधार

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