Book Title: Sambodhi 2006 Vol 30
Author(s): J B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 241
________________ Vol. xxx, 2006 पाण्डुलिपियों और लिपिविज्ञान की अग्रीम कार्यशाला का अहेवाल 235 सामग्री भूर्जपत्र, ताडपत्र, ताम्रपत्र, वस्त्र, कागज आदि विविध पदार्थो पर प्राप्त होती है जिनका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, तथा वैज्ञानिक मूल्य या महत्त्व हो वे सभी इसी श्रेणी में समाविष्ट है। आपने पाण्डुलिपि के अनुसन्धानकर्ता के लिए प्रारम्भिक आवश्यक नीति निर्देशों आदि पर भी चर्चा की तथा हस्तप्रत के सूचीकरण की व्यवहारिक जानकारी दी । आरम्भ में वक्ताद्वय का वाचिक स्वागत संस्था के नियामक डॉ. जितेन्द्र बी० शाह जी ने किया और सभी प्रतिभागियों को शिक्षाभ्यास हेतु अग्रिम बधाई देते हुए हर्ष व्यक्त किया । अन्त में आभार व कृतज्ञता प्रो० कनुभाई शाह ने व्यक्त की । १२ मई, २००७ : प्रो० वसन्त भट्ट, अहमदाबाद ने 'पाण्डुलिपि के सम्पादन के विविध सोपान' विषय से सम्बन्ध चर्चा में कहा की संस्कृत साहित्य के अध्ययन में कृति समीक्षा से पूर्व पाठ-समीक्षा करना अत्यन्त आवश्यक है । इस मत के समर्थक अनेक भारतीय एवं भारतेतर विद्वान मनीषियों का नामोल्लेख किया जिनमें वेलवनकर, सुखठनकर आदि जैसे समर्थ विद्वान् हैं । आपने कहा की ग्रन्थ एवं पाठ की उच्चस्तर तथा निम्नस्तर की समीक्षा का जिक्र किया और बताया कि टेक्स्ट्युअल क्रिटिसिज्म भाषाशास्त्र की शाखा है । मूल पाठ का अन्वेषण कर पाठ-निर्धारण करना समीक्षा है । विविध पाण्डुलिपियों को संकलन कर उनमें कहा किस प्रकार अशुद्धियों का समावेश होता है। उनके प्रमुख बिन्दु है-प्रमादवशात्, अज्ञानवशात्, अनवधानवशात् । इसी कारण ग्रन्थ के मूल पाठ का अन्वेषण अत्यन्त आवश्यक है । आपने कहा कि अभिज्ञानशाकुन्तलम् की समस्त पाण्डुलिपि का प्रत्यक्ष दर्शन करनेवाले मात्र एक व्यक्ति श्री दिलीपभाई कांजीलाल भारतीय विद्वान थे। किसी भी कृति के सम्पादन करने से पहले मूलपाठ का निर्धारण हो जाने पर पाठ-समीक्षा तत्पश्चात् कृतिसमीक्षा होनी चाहिए । प्रो० भट्ट ने सम्पादन के प्रमुख तीन बिन्दुओं अनुसन्धान, संस्करण, उच्चतर समीक्षा पर भी चर्चा की। द्वितीय सत्र के वक्ता डॉ. दिलीप राणाजी ने अपने 'Cataloguing of manuscripts' विषय पर व्याख्यान देते हुए उसके विविध पक्षों पर चर्चा की और प्रयोगात्मक विधि पर प्रकाश डाला। आपने ग्रन्थ के कालनिर्धारण, ग्रन्थमान आदि की प्रक्रिया पर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया । तथा साथ ही आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से नूतनाभिनूतन प्रक्रिया से पाण्डुलिपियों के सूचीकरण करने की विधि को व्याख्यायित किया। १३ मई, २००७ : इसरो, अहमदाबाद के डॉ० पी०एच० ठक्कर, (अहमदाबाद) ने एल०डी० इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डोलॉजी में पाण्डुलिपिविज्ञान एवं पुरालिपिशास्त्र विषय पर आयोजित व्याख्यान माला में इनसीयन्ट मेन्युस्क्रीप्ट एवं 'स्पेस आर्कियोलॉजी' से सम्बद्ध व्याख्यान में बताया कि आज की वैज्ञानिक तकनीक और साहित्यिक साक्ष्यों, ऐतिहासिक तथ्यों, भौगोलिक तथ्यों आदि के माध्यम से हमारी प्राचीन सभ्यता संस्कृति और सांस्कृतिक सम्पत्ति का अन्वेषण कर सकते हैं । जो हमारे देश की संस्कृति को सुरक्षित करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है । इस कार्य में सेटेलाईट यान्त्रिक टेकनोलॉजी बहुत ही सहायक सिद्ध है। द्वितीय व्याख्यान के वक्ता प्रो० विजय पण्ड्या ने 'Logic and Critical Editing Text' .

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