Book Title: Sambodhi 2006 Vol 30
Author(s): J B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 166
________________ 160 कौशल्या चौहान SAMBODHI भिक्षु हैं वे इस तरह ग्रहण करते हैं । जो व्यक्ति ऐसा करता है वह बुद्ध शासन में प्रशंसित और उचित समझा जाता है । वह अच्छी जीविका वाला जाना जाता है ।६५ मिलिन्द प्रश्न करते हैं - भन्ते ! "कह के माँगना" कौन सा उचित समझा जाता है ? नागसेन उत्तर देते हैं। "महाराज ! किसी भिक्षु को आवश्यकता पड़ जाने पर अपने बन्धु-बान्धवों को या वर्षाकाल के लिये जिन लोगों ने निमन्त्रण दिया है, उनको, सूचित करता है । यह "कहके दान माँगना" अच्छा समझा जाता है । जो अच्छे भिक्षु हैं वे इस तरह ग्रहण करते हैं । जो व्यक्ति ऐसा करता है वह सम्यक्-आजीव जाना जाता है ।६६ ४.६ सम्यक् व्यायाम उचित प्रयत्न करने को सम्यक् व्यायाम कहते हैं । सम्यक् वचन, सम्यक् कर्मान्त और सम्यक् आजीव कहलाने वाले शील की भूमि पर प्रतिष्ठित हुये व्यक्ति का उसके अनुरूप आलस्य को नाश करने वाला जो प्रयत्न है, वह सम्यक् व्यायाम है ।६७ सम्यक् व्यायाम उन क्रियाओं को कहते हैं जिनसे अशुभ मनःस्थिति का अन्त होता है तथा शुभ मनःस्थिति का प्रादुर्भाव होता है ।६८ नागसेन “मिलिन्द" को स्पष्ट करते हैं कि व्यक्ति को दृढ़ता के साथ अपने काम में डटे रहना चाहिये । समय (जरूरत) पड़ने पर प्रयत्न करना कोई महत्व नहीं रखता ।६९ "मिलिन्द" प्रश्न करते हैं "कृपया उपमा देकर समझाये।" नागसेन स्पष्ट करते हैं "महाराज ! क्या आप भख लगने के लिये खेत जोतवाना, धान रोपवाना और कटवाना आरम्भ करते हैं ? नहीं भन्ते ! महाराज ! इसी तरह समय (आवश्यकता) पड़ने पर प्रयत्न करना कोई महत्व नहीं रखता ।" ४.७ सम्यक् स्मृति व्यायाम करने वाले व्यक्ति का मिथ्या-स्मृति को नाश करने वाले चित्त का न भूलना सम्यक् स्मृति है । वह (आलम्बन के यथार्थ रूप से) जान पड़ने के स्वभाववाली है। नहीं भूलना उसका कृत्य है । सम्यक् स्मृति का पालन करना तलवार की धार पर चलना है । सम्यक् स्मृति का अर्थ वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप के सम्बन्ध में जागरूक रहना है ।७२ "मिलिन्द' नागसेन से प्रश्न करते हैं - "भन्ते नागसेन ! स्मृति की क्या पहचान है ?" महाराज ! १. निरन्तर याद रखना और २. स्वीकार करना स्मृति की पहचान है।" नागसेन आगे स्पष्ट करते हैं कि स्मृति हित और अहित का अन्वेषण कर अहित का त्याग और हित का उपादान कराती है। स्मृति उत्पन्न होकर यह खोज करती है कि "यह छोड़ना चाहिये, यह नहीं छोड़ना चाहिये, यह ग्राह्य है, यह अग्राह्य है। स्मृतिवान् बुरे धर्मों का प्रहाण करता है और सुखकर धर्मों को स्वीकार करता है ।७३ स्मृतियों की उत्पत्ति मन से भी होती है और बाहर की चीजों से भी ।७४ 'मिलिन्द' के समक्ष नागसेन ने स्मृति की उत्पत्ति के सत्तरह प्रकारों का उल्लेख किया है । ४.८ सम्यक् समाधि चित्त की एकाग्रता को समाधि कहते हैं ।७६ स्मृति से भली प्रकार बचाये जाते हुये चित्तवाले (व्यक्ति) की उससे सम्प्रयुक्त मिथ्या-समाधि को विध्वंस करने वाली चित्त की एकाग्रता, सम्यक् समाधि है । विक्षेप न होना समाधि का लक्षण है। विक्षेप को मिटाना इसका रस है। विकम्पित न होना प्रत्युपस्थान (जानने का आकार) है ।

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