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कानजीभाई पटेल
SAMBODHI
सद्धर्भपुंडरीक का समय निश्चित नहीं किया जा सकता । नागार्जुन ने जो उद्धृत किया उसका क्या स्वरुप होगा यह तो निश्चित नहीं कहा जा सकता । जो अनुवाद हुए हैं वे भी हाल में उपलब्ध सद्धर्मपुंडरीक से भिन्न हैं । ल्युडर्स, हॉर्नेल और मिशेनोव आदि के मतानुसार इन अनुवादों का आधार कोई प्राकृत ग्रंथ था । वसुबन्धु की टीका भी उपलब्ध नहीं हैं अतः उसके स्वरूप के बारे में विचार नहीं किया जा सकता और हस्तलेख भी खंडित मिलते हैं। अतः बाह्य पुरावों के आधार पर हम यह कह सकते है कि प्रथम या द्वितीय शताब्दी में सद्धर्मपुंडरीक था किन्तु किस स्वरूप में यह निश्चित नहीं हो सकता । उसमें प्राचीन
और बाद के तत्त्वों का मिलान है। ऐसा माना जाता है कि पहले मात्र पद्यांश होंगे और उनको जोड़ने का काम करते कुछ गद्यांश प्रस्तावना के रूप में होंगे और बाद में उनका विस्तृतिकरण हुआ होगा । फिर भी बौद्धशास्त्र विषयक विचारों, भाषा, गांधार कला, मूर्तिपूजा आदि को ध्यान में लेने पर वह एक ही समय की रचना न होने पर भी उसका समय प्रथम या द्वितीय शताब्दी मान सकते हैं ।
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