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Vol. xxx, 2006 सद्धर्मपुंडरिक और उसकी पाण्डुलिपियाँ
173 (४) गुप्त अक्षरों में लिखे हुए लेखों में समानता है किन्तु Calligraphic Style में लिखे
गए लेखों से भिन्न हैं। (५) सीधे गुप्त अक्षरों में लिखे गए लेख Calligraphic Style लिपि में लिखे गए लेख
प्राकृत से अधिक प्रभावित हैं और ल्युडर्स ने जैसे बताया वैसे उनकी भाषा प्राकृत जैसी ही थी।
मध्य एशिया और नेपाल के लेखों में संस्कृतिकरण करने का क्रम भिन्न है। (७) सीधे गुप्त अक्षरों में लिखे हुए लेखों का समय पाँचवी या छठ्ठी शताब्दी है और
Calligraphic Style लिपि वाले सातवी शताब्दी के हैं । हॉर्नेल का भी यही मत
गिलगिट के हस्तलेख :
गिलगिट से प्राप्त हस्तलेख सरल गुप्ता अक्षरों में लिखे हुए हैं । इन हस्तलेखों में सद्धर्मपुंडरीक का ३/४ भाग मिला है। उनमें से दो हस्तलेखों के कुछ अंश युरोपीय विद्वानों के हाथो में पहुँच गए और एशियाटीक सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित हुए। डॉ० बुरुआ द्वारा प्रकाशित काश्मीर संग्रह में उसकी सूचना मिलती है। उन्होंने उन पत्रों का चीनी अनुवादों के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया है और पाँचवी या छठी शताब्दी के बताए हैं । गिलगिट के हस्तलेखों के पत्रों की संख्या करीब १५० है जिनमें अधिकांश मिट चुके हैं या अस्पष्ट हैं।
इसके अतिरिक्त तुरफान में से झेकोव को सद्धर्मपुंडरीक के कुछ अंश उद्गीर-तुर्क लिपि में मिले हैं। उसमें अवलोकितेश्वर का महात्म्ययुक्त इस अंश के मिलने से वहाँ के मूल सामान्य लोगों में भी उसका लोकप्रियता का प्रमाण मिलता है ।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि सद्धर्मपुंडरीक के हस्तलेखों की सामग्री की कोई कमी नहीं है। इन हस्तलेखों पर और भी कई विद्वानोंने गवेषणात्मक अध्ययन किया है जो बहुत मुल्यवान है ।
समय :
मध्य एशिया में प्राप्त हस्तलेखों के आधार पर मिशेनोव, होर्नेल आदि विद्वानों ने इसका समय पाँचवी या छठी शताब्दी माना है । वसुबन्धु ने सद्धर्मपुंडरीक पर एक टीका लिखि थी । बसुबन्धु का समय छठी शताब्दी माना जाता है । अतः सद्धर्मपुंडरीक का समय उसके पहले का होना चाहिए । सद्धर्मपुंडरीक के तीसरी शताब्दी से लेकर सातवी शताब्दी तक कई अनुवाद हुए हैं। उन चीनी अनुवादों में सबसे प्राचीन, धर्मरक्ष का था जो ई०स० २८६ में हुआ था । अतः सद्धर्मपुंडरीकसूत्र का अस्तित्व तीसरी शताब्दी में होना चाहिए । नागार्जुन ने (द्वितीय शताब्दी) इसे अपने ग्रंथ में उद्धृत किया है। अतः उसके पहले प्रथम शताब्दी के आसपास उसका संकलन हुआ होगा । फिर भी उपरोक्त बाह्य प्रमाणों से