Book Title: Sambodhi 2006 Vol 30
Author(s): J B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 165
________________ Vol. xxx, 2006 यूनानी सम्राट् मिलिन्द.... 159 __४.२ सम्यक् सङ्कल्प सही इच्छा या इरादा अथवा विचार ही सम्यक् सङ्कल्प है ।५४ मिथ्या सङ्कल्पों को त्यागकर कल्याणकारक सङ्कल्पों में लगना ही सम्यक् सङ्कल्प है ।५५ 'मिलिन्द' के समक्ष नागसेन सम्यक्-सङ्कल्प की व्याख्या इस प्रकार करते हैं कि जब कोई भिक्षु किसी गृहस्थी के घर धर्म का उपदेश दे तो उसे वहाँ भोजन नहीं लेने का सङ्कल्प लेना पड़ता है। धर्मोपदेश करने के लिये कुछ ग्रहण करने में बुद्ध सहमत नहीं होते ।५६ ४.३ सम्यक् वाक् झूठ, चुगली, कटु भाषा और बकवास से रहित सच्ची-मीठी बातों का बोलना सम्यक् वाक् है ।५७ नागसेन "मिलिन्द'' को सम्यक् वाक् के विषय में समझाते हुये कहते हैं कि "महाराज ! किसी बात को अलग-अलग अर्थों में बांट लेने के पाँच प्रकार हैं।८ - १. कहने के आगे-पीछे का प्रसङ्ग देखकर, २. कही गयी बात को तोलकर, ३. कहने वाले आचार्यों की परम्परा देखकर, ४. कहने का उद्देश्य क्या है, इसे समझकर, ५. बातों के प्रमाणों को देखकर । ४.४ सम्यक् कर्मान्त बुद्ध ने भिक्षुओं के निवृत्ति प्रधान जीवन को आदर्श बनाने के लिये कर्मसिद्धान्त को अधिक महत्त्व दिया है । सत्व की सद्गति या दुर्गति का कारण उसका कर्म ही होता है। जीव हिंसा न करना, चोरी न करना, कामभोगों में मिथ्याचार न करना ही सम्यक् कर्मान्त है ।५९ 'मिलिन्द' नागसेन से प्रश्न करते हैं कि किस कारण से सभी मनुष्य एक से नहीं होते ?६० "नागसेन" उत्तर देते हैं कि जिस प्रकार बीजों के भिन्न-भिन्न होने से वनस्पतियाँ भिन्न-भिन्न रस वाली होती हैं उसी प्रकार सभी मनुष्यों के अपने-अपने कर्म भिन्न-भिन्न होने से सभी एक ही तरह के नहीं होते हैं । "महाराज ! भगवान (बुद्ध) ने यही कहा है कि "हे मानव ! सभी जीव अपने कर्मों के फल ही का भोग करते हैं, सभी जीव अपने कर्मों के आप मालिक हैं, वे अपने कर्मों के अनुसार ही नाना योनियों में उत्पन्न होते हैं, अपना कर्म ही अपना बन्धु है, अपना कर्म ही अपना आश्रय है । कर्म ही से लोग ऊँचे और नीचे हुये हैं ।६१ ४.५ सम्यक् आजीव बौद्ध-दर्शन में सम्यक् आजीविका से तात्पर्य झूठी जीविका छोड़कर सच्ची जीविका से शरीर यात्रा चलना है ।६२ दीर्घनिकाय के लक्खणसुत्त में महात्मा बुद्ध ने - तराजू की ठगी, कंस की ठगी, मान की ठगी, रिश्वत, कृतघ्नता, वध, बन्धन, डाका तथा लूटपाट की जीविका - को गर्हणीय बतलाया है ।६३ ___ नागसेन "मिलिन्द" को सम्यक् आजीविका के विषय में इस प्रकार बतलाते हैं कि कोई भिक्षु गृहस्थ के घर पर जाकर अनुचित स्थान में खड़ा हो जाता है। यह बुरा "करके उल्टे या सीधे दान माँगना" है। अच्छे भिक्षु, इस तरह "करके उल्टे या सीधे दान माँगकर" ग्रहण नहीं करते हैं । जो व्यक्ति ऐसा करता है वह बुद्ध शासन में निन्दित, बुरा, पतित और अनुचित समझा जाता है । वह बुरी आजीविका वाला जाना जाता है ।६४ नागसेन आगे कहते हैं - "महाराज ! कोई भिक्षु भिक्षाटन के लिये निकलकर गृहस्थ के दरवाजे पर उचित स्थान में खड़ा होता है, सावधान, शान्त और सतर्क रहता है। यदि कोई देना चाहता है तो खड़ा रहता है, नहीं तो आगे बढ़ जाता है । यह अच्छे करके माँगना है । जो अच्छे

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