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जयन्त उपाध्याय
SAMBODHI
न हीयं कविभिः पूर्वेरदृष्टं सूक्ष्मदर्शिमिः ।
शकता तृणमपि द्रष्टु मतिमर्म तपस्विनी ॥ वही, पृ० ३६३ । १५. जयन्त भट्ट अपने कट्टर विरोधियों के प्रति अमर्यादित शब्दावली का प्रयोग करते हुए कहते हैं-ये त्वीश्वरं
निरपवाददृदप्रमाणसिद्धस्वरूपमपि नाभ्युपयन्ति मूढाः । पापाया तै सहकथापि वितन्यमाना जातेय नूनमति युक्तमतो विरन्तुम् ।। न्यायमञ्जरी भाग-१, पृ० १८७-१८८ कहीं-कहीं वे विरोधियों के तर्को का उपहास करते हैं और व्यंगात्मक भाषा का प्रयोग करते हैं-मीमांसाका: यशः पिवन्तु पायः वा पिवन्तु बुद्धिजाडयापनयनाय ब्राह्मी घृतं वा विन्तु, वेदस्तु पुरूषप्रणीत एवनात्र भ्रन्तिः ।-न्यायमञ्जरी भाग-१, पृ० २१६