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कौशल्या चौहान
SAMBODHI
और सन्तोषजनक समाधान किया है ।१४ पाश्चात्य विद्वान् इस ग्रन्थ के गौरव पर इतने मुग्ध हैं कि उन्हें इसमें ग्रीक प्रभाव और प्लेटो के विचारों की गन्ध आ गयी, क्योंकि उनकी दृष्टि में भारतीयों में ऐसा उत्कृष्ट ग्रन्थ लिखने की क्षमता कहाँ थी !१५ परन्तु वास्तविकता तो यह है कि नागसेन भारतीय ज्ञान के साथसाथ यूनानी ज्ञान का भी परिचय रखने के कारण ही "मिलिन्द'' जैसे तार्किक के प्रश्नों का समाधान कर सके थे ।१६ यूनानी राजा 'मेनान्डर' ने लगभग १२५ से ९५ ईसा पूर्व तक सिन्धु प्रदेश एवं गङ्गा की घाटी में शासन किया और यह 'मिलिन्दपज्ह' ईसाई युग के प्रारम्भ के लगभग या उसके बाद किसी समय लिखा गया ।१७ 'मिलिन्दपव्ह' में बौद्ध-दर्शन विषयक अनेक संवादों का उल्लेख प्राप्त होता है। परन्तु अग्रिम पृष्ठों में यूनानी सम्राट् 'मिलिन्द' और बौद्ध भिक्षु नागसेन के मध्य हुए "आर्यसत्य' विषयक दार्शनिक संवाद का ही उल्लेख किया जायेगा ।
आर्यसत्य भगवान् बुद्ध की शिक्षाओं में चार आर्यसत्यों का बड़ा महत्त्व है। यह उनका मौलिक अनुसन्धान है जिस पर सम्पूर्ण बौद्ध-विचारधारा आधारित है। कर्त्तव्यशास्त्र की दृष्टि से बुद्ध ने चार सत्यों का पता लगाया है। इन्हीं सत्यों के सम्यक् ज्ञान के कारण उन्हें सम्बोधि प्राप्त हुई ।८ ये चार आर्यसत्य तथ्य, अवितथ, न अन्यथा होने वाले हैं, इसीलिए आर्यसत्य कहे जाते हैं ।१९ आर्यसत्यों को बुद्धों का स्वयं उत्पादित एवं उत्कर्ष की ओर ले जाने वाला धर्मोपदेश कहा गया है । भगवान् बुद्ध ने कहा है "भिक्षुओ! चार आर्यसत्यों को न जानने के कारण मेरा तथा तुम्हारा चिरकाल तक संसार में घूमना लगा रहा । हम लोग चार आर्यसत्यों को ठीक से न देखने के कारण ही आज तक चक्कर काटते रहे, किन्तु अब उसे हम लोगों ने देख लिया है, तृष्णा नष्ट हो गयी, दुःख का मूल कट गया । फिर जन्म लेना नहीं है ।२० बौद्ध-दर्शन में इन आर्यसत्यों की व्याख्या करते हुये कहा गया है कि आर्य लोग ही इनका ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, अतः इन्हें आर्यसत्य कहते हैं ।२१ धम्मपद में दुःख, दुःखसमुदय, दुःखनिरोध तथा दुःखनिरोधगामिनी प्रतिपद् को आर्यसत्य कहा गया है ।२२ 'मिलिन्द' नागसेन से प्रश्न करते हैं कि "भन्ते ! नागसेन ! उनकी (बुद्ध की) "अगद (विष-औषध) की दुकान" क्या है ?२३ 'नागसेन' उत्तर देते हैं कि "राजन् ! भगवान् (बुद्ध)ने वह दवाई बतलायी है जिससे उन्होंने देवताओं और मनुष्यों के साथ सारे संसार को क्लेश से मुक्त कर दिया था और यह दवाई चार आर्यसत्य है४ - १. दुःख आर्यसत्य २. दुःखसमुदय आर्यसत्य ३. दु:खनिरोध आर्यसत्य ४. दुःखनिरोधगामी मार्ग आर्यसत्य ।" आर्यसत्यों के ज्ञान होने के विषय में नागसेन उपमा द्वारा समझाते हुये कहते हैं कि जैसे कोई आदमी हाथ में एक जलता चिराग लेकर किसी अन्धेरी कोठरी में जाये, उसके जाते ही अन्धेरा हट जाये, सारी कोठरी प्रकाश से भर जाये और सभी वस्तुयें दीखने लगे, वैसे ही प्रज्ञा के उत्पन्न होने से अविद्यारूपी अन्धेरा दूर हो जाता है और विद्यारूपी प्रकाश पैदा होता है जिसमें चारों आर्यसत्य साफ-साफ दिखायी देते हैं। तब योगी अनित्य, दुःख और अनात्म को भली-भान्ति जान लेता है ।२५
१. दुःख “दु" यह शब्द कुत्सित के अर्थ में दिखलाई देता है । "ख" शब्द तुच्छ के अर्थ में । यह पहला सत्य अनेक उपद्रवों का वासस्थान होने से कुत्सित है ।२६ बौद्ध-दर्शन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह जगत् दुःखों से परिपूर्ण है। इस सत्य का कथमपि अपलाप नहीं हो सकता है।२७