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वेदार्थघटन और सायणाचार्य
दीनानाथ शर्मा
वैदिक भाष्यकारों की एक लम्बी परम्परा रही है। सातवीं से बीसवीं सदी तक के लम्बे अन्तराल में अनेकानेक आचार्यों ने वेदभाष्यों का प्रणयन क्रिया, जिनमें स्कन्द स्वामी (सं ६८७), नारायण (सं ६८७) उद्गीथ (सं ६८७), वेंकटमाधव (सं ११००-१२००) भट्ट गोविन्द (सं १३६७) सायणाचार्य (सं १३७२१४४४) शौनक रावण (सं १६ वीं सदी) कुण्डिन् (पाचवीं सदी) महीधर (१७ वीं सदी) आदि प्रमुख हैं । ऋग्वेद के भाष्यकारों में सायण सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं । वे बुक्क प्रमथम, कम्पण, संगम द्वितीय और हरिहर द्वितीय इन चार राजाओं के और विजयनगर तथा उसके उपराज्यों के मन्त्री थे । ऋग्वेद भाष्य के प्रत्येक अध्याय की समाप्ति पर वे लिखते हैं
'इति श्रीमद्रजाधिराजपरमेश्वर वैदिकमार्ग प्रवर्तक श्रीवीर बुक्कभूपाल साम्राज्य धुरन्धरेण सायणाचार्येण विरचिते माधवीये वेदार्थ प्रकाशे ऋक् संहिता भाष्ये प्रथमाष्टके प्रथमोऽध्यायः समाप्तः ।'
अपनी सुभाषित सुधानिधि के आरम्भ में सायणने अपने को कम्पराज का मन्त्री कहा है। धातुवृत्ति, प्रायश्चित्त सुधानिधि, यज्ञतन्त्रसुधानिधि और अलंकारसुधानिधि में सायण ने अपने को संगम द्वितीय का मन्त्री कहा है । शतपथ आदि ब्राह्मणों के भाष्य में उन्होंने हरिहर द्वितीय का मन्त्री कहा है। इनमें बुक्क प्रथम का सबसे पुराना शिलालेख संवत् १४११ का है। महाराज हरिहर द्वितीय, बुक्क प्रथम का पुत्र था। हरिहर द्वितीय संवत् १४९४ में भी राज्य कर रहा था । मैसूर पुरातत्त्व विभाग सन् १८१५ की रिपोर्ट में इसी संवत् के उसके एक शिलालेख के मिलने की बात कही गयी है । हरिहर द्वितीय की मृत्यु कब हुई यह ज्ञात नहीं है लेकिन संवत् १४५६ तक वह राज्य करता था, जैसा कि उसके एक शिलालेख से ज्ञात होता है । आफेख्ट के मतानुसार सायण की मृत्यु १४४४ में हो गई थी । सायण ७२ वर्ष तक जीवित रहे इसलिए उनका जन्म अनुमानतः संवत् १३७२ में हुआ होगा । (वैदिक वाङ्मय का इतिहास-२ पृ.७०)
एपिग्राफिया इण्डिका भाग १ प. ११८ पर एक टूटे शिलालेख का अंश छपा है, जो कांचीपुरम् के मन्दिर में ग्रन्थाक्षरों में है। जिसमें सायण की कुलविषयक जानकारी दी गयी है । सायण का कुल भारद्वाज था, सूत्र बौधायन, माता-श्रीमायी, पिता-मायण, कनिष्ठ भ्राता-कविभोगनाथ स्वामी-संगम, और उनके गुरु का नाम श्रीकण्ठनाथ था । (वैदिक वाङ्मय का इतिहास-२ पृ. ७०)
इसमे कोई सन्देह नहीं कि सायण एक अप्रतिम विद्वान थे, लेकिन वे एक राज्यमंत्री भी थे। मन्त्री का कार्य करते हए उतने ग्रन्थों के लेखन का समय कैसे निकाल पाते थे-यह एक आश्चर्य मिश्रित