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Vol. xxVII, 2004
वेदार्थघटन और सायणाचार्य विचारणीय प्रश्न है। डॉ. गुणे, पं. भगवद्दत्त आदि विद्वानों ने सायण का सहायक होने का भी अनुमान लगाया है। वैदिक वाङ्मय सायण व्याकरण, निरुक्त, छन्दः आदि के अधिकृत विद्वान थे। इसके बावजूद उन्होंने पूर्व भाष्यकारों स्कन्द, नारायण और उद्गीथ के भाष्यों से काफी सहायता ली है। ब्राह्मण ग्रन्थों से शाट्यायन कौषीतकी, ऐतरेय तैत्तिरीय ताण्ड्य आदि का उद्धरण दिया है जिससे उनके व्यापक अध्ययनका ज्ञान होता है। सायण ने निम्नलिखित ग्रन्थ लिखे थे : (१) धातुवृत्ति (२) वैदिक भाष्य : तैत्तिरीय ऋक्, काण्व यजुः साम, अथर्व संहिताओं के भाष्य । (३) ब्राह्मण भाष्य : तैत्तिरीय, ऐतरेय साम अष्ट ब्राह्मणों के भाष्य । (४) आरण्यक भाष्य : तैत्तिरीय आरण्यक ऐतरेय आरण्यक भाष्य । (५) ऐतरेय उपनिषद् दीपिका । (६) सुभाषित सुधानिधि । (७) प्रायश्चित्त सुधानिधि अथवा कर्मविपाक । (८) अलंकार सुधानिधि । (९) पुरुषार्थ सुधानिधि । (१०) यज्ञमन्त्र सुधानिधि ।
अब हम वेदार्थघटन की परम्पराओं पर विचार करेंगे और देखेंगे कि सायण उन परम्पराओं में से किस परम्परा से सम्बद्ध हैं और एक भाष्यकार के रूप में उनका क्या स्थान है । वेदार्थ घटन की विविध परम्पराएँ
यास्कीय निरुक्त में उल्लिखित कौत्स विवाद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । परम्परागत अनादि अनन्त माने जाने वाले वेद मन्त्रों को निरर्थक घोषाति करने का और उसके लिए अनेक तर्क प्रस्तुत करने का जो साहस कौत्स ने किया उसका सुफल यह हुआ कि निरुक्त और व्याकरण जैसे वेदांग हमें प्राप्त हुए। वेदों की सार्थकतता और नित्यता सिद्ध करने के लिए ही निरुक्त और व्याकरण अस्तित्व में आये । अन्य सम्प्रदाय भी अस्तित्व में आये जिन्होंने वेदार्थ घटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी ।
(१) ऐतिहासिक सम्प्रदाय - वेदमन्त्रों में जो देवों के पराक्रम दस्यु, वृत्र, पणि, पंचजना, इन्द्र, विश्वामित्र और नदियां, यम-यमीसंवाद या पुरुरवा-उर्वशी-संवाद दाशराज्ञयुद्ध आदि देखने को मिलते हैं, कुछ आचार्य उन्हें इतिहास कहते हैं । उनका मत है कि इन्द्र आर्यजाति के नेता हैं क्योंकि उन्हें पुरन्दर या पुरभिद् कहा जाता है। इन्द्र अनेक नगरों को तोड़कर पंजाब से होते हुए आर्यों को भारत लाये थे। सातवें मण्डल के अठारहवें सूक्त में दाशराज्ञ युद्ध का वर्णन है, जिसमें उल्लेख है कि आर्यों और अनार्यों