Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 10
________________ तिणवइमो संधि जरसंधे समरे समत्तए हरि वारवइ पईसरइ। तव-कारणे णेमि गिरि- उज्जतहो णीसरइ । [१] एत्तहे विणिवाइउ मगह-राउ एत्तहे वसुएवहो विजउ जाउ वेयड्ढहो दाहिण-सेढि सिद्धि पज्जुण्ण-संवु-पण्णत्ति-रिद्धि वत्ताउर गय पिउहे पासु हरि-वइयरु अक्खिउ तेहिं तासु चक्काहिउ जिउ चक्केण भिण्णु जिह णिवडिउ साल-दुमो व छिण्णु ४ जिह सुर-णर-परिमिउ सावलेवु णारायणु णवमउ वासुएउ विजाहर जे जे जगे अजेय जायवहं जाय ते वस-विहेय दिण्णउ कण्णउ हरि-णंदणाहं सोहग्ग-रूव-धण-जोव्वणाहं एत्तहे मरंतउ कुरुव-राउ सत्थारे महारिसि तुरिउ जाउ सण्णास-विहाणे पाण मुक्क पय पंच जेण मासेण मुक्क गउ सग्गहिं सत्तु-समूह-वत्त जायव जरसंधहो पासु पत्त घत्ता संकारिय सव्व जे जे विणिवाइय राय रणे। णं गिंभ-दवेण सुक्क महा-दुम दड्ड वणे॥ [२] अट्ठारह अक्खोहणिउ जेत्थु को डज्झउ रुज्जउ कवणु तेत्थु गोविंदें तो-वि भडग्गि दिण्णु सिज्झविउ सव्वु जो जेवं तिण्णु पए पए चियाइं पज्जालियाई छुडु छुडु अंगई पक्खालियाई तहिं अवसरे पर-णरवर-णिसिद्ध सोणासण-महारहु वसह-चिंधु वारवइहे आउ समुद्दविजउ सज्जणे मि कुमारें लद्ध-विजउ स-दसारुह खेमाखेमि हूव थिय एक्कहिं णिम्मल-कुल-पसूय पुणु गय गंगा-णंदणहो पासु गुरु भणेवि ति-भामरि दिण्ण तासु तहिं हंस-महारिसि-परमहंस वंदेप्पिणु विण्णि-वि किय-पसंस ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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