________________ * प्रथम परिच्छेद * को तोड़ने के लिए स्वोपज्ञ वचन कहने लगे-एक वार में एक एक पर्याय को ग्रहण करने वाली वाणी नय कहलाती है, एक साथ अनेक वस्तु के धर्म को अवलम्बन करने वाली प्रभा कहलाती है। नय अन्योन्य सापेक्ष है इसलिए सर्वज्ञ भगवान ने उनको सुनय कहा है / अन्योन्य एक दूसरे के मत्सर से क्षीण हो गये हैं विषय जिनके, ऐसे नय कुनय कहे जाते हैं। जोगे जोगे जिण सासणम्भि दुक्ख क्खया पउज्जन्तं / इक्कि कम्मि आणन्ता वट्टन्ता केवली जाया // छाया-योगे योगे जिन शासने दुःख क्षयाय प्रयुज्यमाने। ' एकैकस्मिन् अनन्ता प्रवर्तमाना केवलिनो जाता // / जिन शासन में दुख के क्षय के वास्ते प्रयोग किये गये हर एक योग में वर्तमान अनेक केवली हो गये। __.. उपर्युक्त प्रमाण से जिन शासन में तुम प्रत्येक समान भाव से मोक्ष के अङ्ग भाव पाकर इस समय आपस में मत्सर भाव को ग्रहण कर दुर्नय मत होओ। बहुतायत से सत्पात्र में श्रद्धायुक्त दान से, निर्मल शील से, . तीव्र तपस्या से और सदभाव से अनेक लोग मोक्ष को प्राप्त हुए हैं और होंगे / यदि तुम लोग अपना न्यूनाधिकत्व “कौन छोटा है और कौन बड़ो” जानना चाहते हो तो सावधान होकर सुनो, मैं / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust