________________ रत्नपाल नृप.चरित्र * .. पुण्य योग सेपहाड़ के समान शरीर वाला . वन्य , जातिमान हाथी कहीं से बगीचे में आया है। यह सुनकर आश्चयं से गजविद्या में कुशल वह नप उस हाथी को वश में करने के लिए स्वयं उस उद्यान में गया और. पहिले. पहला अपने दुपट्टे को समेट कर उसने हाथी के आगे फेंक दिया। क्रोध के 'भड़कने से मदोन्मत्त उस हाथी ने उसे अपने दातों मे दबा दिया। तब पृष्ट भाग पर नपा ने जोर से मुष्टि प्रहार किया। जैब वह पीछे मुड़ने लगा, तब घूमते हुए राजा ने उसे अत्यन्त खेदित किया, इस प्रकार : अत्यन्तः उसे खिन्न कर सेवक की तरह उसे वश में करके जवः राजा उसके ऊपर चढ़ा तत्र उसे वन्य हाथी ने छल प्रकट करको ना के. माथ गरुड़ की तरह अाकाश का मार्ग पकड़ा। आकाश में जाते हुए शेजा ने बहुत दूर होने से पृथ्वी पर रही हुई नदियों को, चकार रेखा के सदृश; बड़े सपर्वतों को टीलों के. सदृश और बड़े.. नगरों को कीटिका नगर की तरह आश्चर्य : से निर्भय, होकर देखा। और विचारने लगा कि क्या मैं आज किसी मित्र से विविध आश्चर्य युक्त स्थलों को दिखाने के लिए हरण किया जारहा हूँ, या कोई मेरा, शत्रु बड़ी आपत्ति में डालने के लिए मुझे लेजारहा है / नृप के दिमाग में ऐसा संदेह उठ ही रहा था कि हाथी किसी बहुत बड़े तालाब के ऊपर से होकर गुजरने लगा। नृप अपने भाग्य के भरोसे तीर्थङ्कर, भगवान् P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust