________________ 86 ] * रत्नपाल नृप चरित्र क कूप की तरह त्याज्य, गली के पानी की तरह अश्लाघ्य हो गया। अन्यत्र भी कहा हैः- किंशुके किं शुकः कुर्यात् फजितेऽपि बुभुक्षितः // अदातरि समृद्धऽपि विदधाथनः किमु // 1 // अर्थात्-भूखा तोता फले हुए टेसू पर क्या करे ? उसी प्रकार समृद्धिमान् के अदाता होने पर याचक लोग क्या करें ? अर्थात् कुछ नहीं कर सकते। ... .. | उस कृपण सेठ शृंगदत्त के घर में उसको जवान पुत्रहुए आपस में सखी भाव रखती हुई कैदखाने में डाली हुई की सदृश कष्ट से समय विताती थीं। एक दिन मूर्तिमान् पाप की तरह उस सेठ को द्वार पर देखकर कोई योगिनी गुप्त रूप से आकाश मार्ग से उसके घर के भीतर आ गई। अचानक उसको आई हुई देखकर संभ्रम के साथ सब पुत्र-बहुएँ उसके सामने उठ खड़ी हुई और समीप जाकर कहने लगीपूर्वभव का शत्रु वह हमारा ससुर क्या आज मर गया ? जो आप हमारे पुण्य से आकृष्ट हुई यहां भीतर आई हो ? तब वह योगिनी बड़े अभिमान से कहने लगी. कि नाना मन्त्र, औषधियों को जानने वाली हमारे लिए जगत में कोई. कार्य दुःसाध्य नहीं तथा कोई स्थल दुर्गम नहीं। तदनन्तर उन ___.. उसके P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust