Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 127
________________ . 106 1 * रत्नपाल नृप चरित्र * विद्वान् इसके न्यूनाधिकपने को जानता हो और मुझे विश्वास दिला दे, उसको मैं ये पांचों रत्न दे दूं। उसके दुर्बोध संशय को राजसभा में किसी ने दूर नहीं किया। यह किंवदन्ती सारे नगर में फैल गयी। उस समय देवी की कृपा से प्राप्त विवेक धनदत्त राजा के महत्व की रक्षा करने के इरादे से सभा में गया और कहने लगा हे भद्र ! समुद्र में पानी कम और कीचड़ अधिक है। यदि मेरे कथन में तुझे विश्वास न हो तो समुद्र में गिरती हुई गंगा आदि नदियों को रोककर समुद्र के सब जल का होशियारी से नाप बना ले। फिर समुद्र के समस्त जल को अलग करके कर्दम का नाप करले / ऐसा करने से कीचड़ की संख्या निश्चय ही अधिक होगी। इस असाध्य चतुरता से भरी वचनोक्ति से हणाया हुआ, लज्जा से विलख मुख, अपनी पराजय को मानता हुआ वह कहे हुए रत्नों को धनदत्त को देकर सभा में अपनी हंसी करवाकर नगर के बाहिर चला गया। 'प्रशंसनीय है बुद्धि जिसकी' ऐसा धनदत्त राजा से बहुत सत्कार पाया हुआ बड़े उत्सव के साथ अपने घर गया। * एक दिन उस नगर में नौजवान स्वरूप, अच्छा शृंगार किया हुआ धूर्त रूप सौभाग्यशालिनी, बारह कोटि 1. यह बात P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134